चुनाव आते-आते एकतरफ माहौल बदल गया नजदीकी मुकाबलों में
परिणाम चौकाने वाले आने की संभावना से नहीं किया जा सकता इनकार
चंडीगढ, 29 मई। लोकसभा चुनावों से पूर्व हरियाणा में एक माहौल बना जो सरकार के खिलाफ
आक्रोशित दिख रहा था। हम बात कर रहे हैं किसान वर्ग की। किसानों का बीजेपी के खिलाफ विरोध
सिर चढ़ कर बोलने लगा तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी सुर में सुर मिलाने का बेहतर अवसर मिल
गया।
क्योंकि इससे पहले तो बीजेपी के कार्यकर्ता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को जुबान खोलते ही आड़े हाथ ले
लेते थे। आखिर कांग्रेस का कार्यकर्ता जुबान खोलने से परहेज करने लगे। किसानों के आंदोलन के
बाद कांग्रेसी कार्यकर्ता भी मुखर होकर बीजेपी के खिलाफ बरसने लगा।
नतीजन बीजेपी के खिलाफ नेरेटिव खड़ा हो गया। पर मतदान के बाद क्या परिणाम भी उसी प्रकार के आएंगे ? यह सवाल सबकी जुबान पर है।
क्योंकि मतदाताओं के कई वर्ग है। कुछ वर्ग बीजेपी के खिलाफ नहीं बोल रहे थे। वो बोल ही नहीं रहे थे। इस लिए इस बार साइलेंट वोटर वर्ग को लेकर भी अब चर्चा होने लगी है।
यह कामकाजी वर्ग है। यह वर्ग अपने काम के लिए कई वर्गों पर आश्रित भी है। चुप रहने में ही भला समझता है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इस वर्ग का रुझान परिणामों को चौकाने वाले बना सकता है।
डेरा फेक्टर, इनेलो, जेजेपी का वोट बैंक भी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। एक पार्टी को तो उम्मीदें थी कि कि इनेलो के वोटों के सहारे उनकी नैय्या पार लग जाएगी।
एससी के दो वर्ग है। एक एससी ए और एक एससी बी। ये दोनों वर्ग ही अगल-अलग धड़ोंं में बंटे हुए दिखे ।
बीसी वोट बैंक में बीजेपी की अच्छीखासी सेंधमारी समझी जा रही है।
इसके अलावा इस बार कम वोटिंग का गुणा-भाग तो परिणाम के सारे गणित भी बिगाड़ सकता है।
कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि जो एकतरफा माहौल की आम चर्चाएं हो रही है पर हो सकता है परिणाम उस प्रकार न आएं।
या यूं कहें कि लाखों की जीत का मार्जिन हजारों तक ही सिमट जाए। कुल मिला कर सभी प्रत्याशियों की सांसे थमी सी हुई हैं। चार जून को ही पता चल सकेगा कि जीत का सेहरा किस के सिर बंधेगा।