नई दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) के 18वें लोकसभा चुनावों के लिए रणभेरी बज चुकी है। चुनावी मैदान में ताल ठोकने के चाह्वानं नेताओं ने काफी अरसे से इसकी कसरत शुरू कर दी थी। अपनी-अपनी पार्टियों में टिकट के लिए टकटकी लगाए बैठे नेताओं के दल बदलने का मौसम आ चुका है। क्योंकि चुनावी मौसम में टिकट न मिलने पर तथा कई और प्रकार की नाराजगी के चलते दल-बदलू नेताओं के तेवर इन्हीं दिनों में तलखी प्रतीत होते है।
अब तक ऐसा होता रहा है कि चुनावों के दौरान कई नेता इधर से उधर होकर नई पार्टियों में अपने राजनीतिक भविष्य के सुनहरे सपने संजोते है। नई पार्टियों में उनके मनमाफिक सम्मान व स्थान न मिलने पर कुछ नेता पुरानी पार्टी में भी घर वापसी करते है। हाल ही में देश में कई उदाहरण देखने में आए है। देश की बात करें तो अनेक ऐसे नेता है जो अपनी मूल पार्टी को छोडक़र दूसरी पार्टियों के दामन थामते रहे है।
पूर्व की बात करें तो नेताओं के दल बदलने का मौसम सबसे अच्छा चुनावी दिन ही रहे है। बहरहाल चुनावी बिगुल बजने के बाद बगावती नेताओं के तेवरों में तलखी आने लगी है। अब देखना यह होगा कि इस बार चुनावों के दौरान कितने नेता पार्टियों बदल कर इधर से उधर होते है। अगर नेताओं के लिए इस मौसम को बसंत मौसम कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
बात नेताओं की ही नहीं कार्यकर्ता भी इसी मौसम में पार्टियां बदलने में अधिक दिलचस्पी दिखाते है। विभिन्न पार्टियों में काम करने वाले कार्यकर्ता चुनावी मौसम में दूसरी पार्टियों में शामिल होते है। ऐसे में अधिकतर कार्यकर्ता पार्टी नेताओं पर अनदेखी का आरोप लगाते है। कुछ कार्यकर्ता राजनीतिक हवा को भांपते है और जिधर पलड़ा भारी लगे उसी तरफ हो जाते है।
दरअसल पार्टी बदलने से पहले नेता अपनी पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने शुरू कर देते है। उसके बाद पार्टी बदलने के सवाल पूछे जाने पर उत्तर देते है कि कार्यकर्ताओं से सलाह करके फैसला लेंगे। पर वास्तव में ऐसा होता नहीं है। वे कार्यकर्ताओं से पूछने की बजाय अपने फैसले को उप पर थोपते है। ऐसे में अंधभगत किस्म के कार्यकर्ता पार्टी छोडक़र अपने नेता के साथ ही नई पार्टी में चले जाते है जबकि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता नेता के साथ पार्टी नहीं बदलते।
दल बदलुओं पर पार्टियों की रहती है पैनी नजर
राजनीतिक लोगों द्वारा पार्टियों छोड़ने से पार्टी को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पार्टियों द्वारा विकल्प खोजने के प्रयास भी इसी मौसम में तेज हो जाते है। साथ ही पार्टियों के मुखियों द्वारा अपनी पार्टियों में बगावती नेताओं पर पैनी नजरें रखी जाती है, ताकि उन्हें पार्टी में बने रहने के लिए रोका जा सके।