एक बार 1996 में सिरसा से हुई थी जीत, जिले के बाकी हलकों में कभी कमल खिला ही नहीं
सिरसा, 3 नवंबर। जहां प्रदेश भर में भाजपा जीत का जश्न अब तक मना रही है वहीं सिरसा जिले में भाजपाई मायूसी में दिख रहे हैं।
भले ही भाजपा ने तीसरी बार प्रदेश में सरकार बना ली है पर इन तीनों ही बार में सिरसा जिले की सभी पांचों सीटों पर भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई।
या यूं कहें कि यहां के भाजपा कार्यकर्ता जनता में पार्टी का प्रचार करने में कमजोर रहे हैं। यहां पर पार्टी कार्यकर्ताओं की कमजोरी ही हर बार हार का कारण बनती है। दूसरी तरफ सिरसा में कांग्रेस की तरह भाजपा में भी गुटबाजी है जो पार्टी को पनपने नहीं दे रही।
गत माह हुए विधानसभा चुनावों में जहां ऐलनाबाद, रानियां व डबवाली में भाजपा प्रत्याशियों की जमानतें जब्त हुई वहीं सिरसा में पार्टी ने अपना प्रत्याशी न उतार कर यह साबित कर दिया कि यहां के कार्यकर्ताओं में इतना दम नहीं है कि पार्टी के प्रत्याशी को फाइट तक पहुंचा सकें।
रानियां में भाजपा का प्रत्याशी चौथे स्थान पर रहा, ऐलनाबाद में तीसरे स्थान पर व डबवाली में भी तीसरे स्थान से भाजपा प्रत्याशियों को संतोष करना पड़ा।
यही वजह है कि जिले की पांचों सीटों के भाजपा कार्यकर्ता इन दिनों मायूसी के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में वे सरकार से उम्मीद भी कर रहे हैं कि यहां से किसी नेता को अच्छा पद मिल जाए ताकि सिरसा की सत्ता में थोड़ी बहुत भागीदारी दिखने लगे। पर अब तक पार्टी के नेताओं के तेवर देख कर लग नहीं रहा है कि किसी नेता को इतनी पॉवर दी जाएगी।
सूत्र बताते हैं कि सिरसा की पॉवर कैबिनेट मंत्री कृष्ण बेदी को सौंपी जा सकती है क्योंकि सिरसा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा अपनी मजबूती यहां के तथाकथित नेताओं के भरोसे की बजाय नए नेता के सहारे अपना प्रभाव बढ़ाना उचित समझ सकती है।
पिछले करीब डेढ माह से यहां के भाजपाई सोशल मीडिया पर अपने दर्द को किसी न किसी बहाने बयां करते देखे जा रहे हैं। पर सवाल यह भी उठता है कि उन्होंने पार्टी की नैया पार लगाने की करामात नहीं दिखाई तो उनको पावर किस लिए दी जाए।
बात सिरसा विधानसभा की करें तो यहां से भाजपा का प्रत्याशी मैदान में नहीं था तो पार्टी ने हलोपा के प्रत्याशी को समर्थन दे दिया था। पर स्थानीय नेताओं ने हलोपा प्रत्याशी को हराने के लिए ताकत लगाई थी। यह बात भी जग जाहिर हो चुकी है।