रबी सीजन में गेहूं के बीज में दी जाने वाली सब्सिडी किसानों के साथ बहुत बड़ा धोखा, सरकार को लगाया जा रहा है चूना: लखविंदर सिंह औलख
सिरसा। भारतीय किसान एकता बीकेई के प्रदेशाध्यक्ष लखविंदर सिंह औलख बताया कि हरियाणा सरकार द्वारा रबी सीजन में गेहूं पर सरकारी व सहकारी आधारों में सब्सिडी के नाम पर किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है और सरकार के साथ भी बहुत बड़ी लूट हो रही है।
गेहूं पर दी जाने वाली एक हजार रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी आधारहीन है। हरियाणा बीज विकास निगम, नेशनल सीड्स कॉरपोरेशन, हेफेड, एचएलआरडीसी, इफको, कृभको, एनएफएल सहित सभी आधारों पर 2875 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं का बीज बेचा जा रहा है।
सरकार ने सर्टिफाइड गेहूं के बीज का मूल्य 3875 रुपए प्रति क्विंटल मानकर 1000 रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी देकर यह रेट तय किया है।
इसमें ही सबसे बड़ा खेल हो रहा है। औलख ने कहा कि मंडियों में गेहूं के भाव में तेजी होने के बावजूद भी प्राइवेट भेज कंपनियों का रेट 3100 रुपए से 3200 रुपए प्रति क्विंटल है।
दूसरा पैमाना यह भी देखा जा सकता है कि रबी 2023-24 में किसानों से इन सभी आधारों ने 2275 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं खरीदी थी, जिस पर 100 रुपए से लेकर 350 रुपए प्रति क्विंटल बोनस दिया गया था।
प्रोसेसिंग के समय (टूटा हुआ छोटा दाना) गेहूं किसान को वापस कर दिया जाता है। सरकारी एजेंसी द्वारा किसानों से गेहूं के खेत के निरीक्षण व रजिस्ट्रेशन फीस अलग से ली जाती है। गेहूं का बीज तैयार करने के सारे खर्चे जोड़ दिए जाएं,
जिसमें मजदूरी, बारदाना, प्रोसेसिंग फीस, पैकिंग बैग, लेबल, गोदाम भाड़ा, रकम का ब्याज, स्टाफ के खर्चे सहित 550 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं बनेगा। गेहूं की खरीद 2275 रुपए में 550 रुपए खर्चा जोडक़र गेहूं के बीज की अनुमानित कीमत 2825 रुपए प्रति क्विंटल बनती है।
प्राइवेट बीज कंपनियों ने भी अपना रेट 3100 रुपए से 3200 रुपए प्रति क्विंटल निकाला है। दोनों ही तरीकों से किसानों को दी जाने वाली एक हजार रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी साबित नहीं होती है।
हमारी सरकार से अपील है कि इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच करवाई, जिससे किसानों के नाम पर जो हरियाणा सरकार ने गेहूं के बीज में 1000 रुपए प्रति क्विंटल सब्सिडी जारी की है, उसका पता लगाया जा सके कि वह किसकी जेब में जा रही है।
पिछले कई सालों से इसे कौन लूट रहा है, गेहूं के बीज के प्राइवेट रेट और सब्सिडी के बाद दिये गये सरकारी रेट में ज्यादा अंतर नहीं है, फिर यह किसानों के नाम पर दी जाने वाली सब्सिडी कौन खा रहा है?