मतदाताओं का जमीर खरीदना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण

सिरसा। हरियाणा में विधानसभा चुनाव चार दिन बाद यानी 5 अक्टूबर को होने जा रहे हैं। कई दिनों से प्रचार में जुटे नेताओं ने अब आखिरी तीन दिनों में पैसों का खेल खेलने की रणनीति बना ली है।

मोहल्ला व गांव स्तर पर लिस्टें बन गई हैं। आखिर अब मतदाताओं के जमीर को खरीदने के लिए कसरत होने लगी है। यह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही है।

दरअसल चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं को प्रलोभन देने की परंपरा नेताओं ने ही चलाई थी। अब परंपरा ऐसी बन गई है कि मतदाता भी इस ताक में रहने लगे हैं कि कब उनकी मांग पूरी हो। चुनावों में पैसों का खेल अब इस कदर हो गया है कि इसके बिना प्रत्याशी की नैया पार होना काफी कठिन जाती है।

खासकर अगर हम बात सिरसा की करें तो एक परिवार की तरफ से इस परंपरा को इस स्तर तक ले गए कि अब तक चुनावों से तीन-चार दिन पहले ही लिस्टें तैयार होने लगी हैं कि किस गांव व वार्ड में किस किस का वोट बिकाऊ है।

देश को आजाद करवाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों ने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि देश का लोकतंत्र इस प्रकार का होगा। उनकी आत्माएं रो रही होंगे ऐसा देख कर। आखिर लोगों की सेवा करने के लिए करोड़ों की बाजी क्यों लगाते हैं नेता लोग?

धन बल से चुनाव जीत कर वे लोगों की नहीं बल्कि अपनी सेवा करना चाहते हैं। यह सबके समझ में तो आ गई है पर मतदाता इतना बिखरा हुआ है कि ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिए एकजुट नहीं हो पाता।

सिरसा में तो चार दिन पहले ही काम शुरू हो गया। इसको कोड की भाषा में स्प्रे करना कहा जा रहा है। स्प्रे करना यानी लोगों के घरों तक पैसा पहुंचाना।

इस खेल में वार्ड व गांव के स्थानीय लोग अहम भूमिका निभाते हैं। जिन्हें कोड की भाषा में दाई कहा जाता है। यानी के वे अपने क्षेत्र के बारे में पूरा ज्ञान रखते हैं कि चंद पैसों की खातिर कौन अपना जमीर बेच सकता है।

खैर स्थिति ऐसे ही चलती रही तो कोई अच्छा इंसान चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। ऐसी परंपराएं स्वच्छ लोकतंत्र को मैला कर रही हैं और हम सब यह सकने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे।

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