नगर परिषद में करोड़ों के भ्रष्टाचार का हुआ भंडाफोड़

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स्वगात द्वार में नगर परिषद का भ्रष्टाचार सामने आने पर रद्द किया टेंडर

सिरसा, 30 सितंबर। सिरसा की नगर परिषद में भ्रष्टाचार को किस स्तर पर नंगा नाच इस बारे में शायद सभी लोगों को मालूम नहीं है। वैसे तो पिछले पांच सालों में सिरसा की नगर परिषद भ्रष्टाचार के मामलों में चर्चा में रही है पर अधिकारी सांठगांठ कर करोड़ों का चूना लगाने से भी गुरेज नहीं करते।

एक के बाद एक मामले सामने आने के बावजूद बीजेपी सरकार ने आंखें मंूद कर अधिकारियों पर मेहरबानी बनाए रखी। अब एक और मामला प्रकाश में आया है।

जिसके तहत स्वागत द्वार का टेंडर उस एजेंसी को नहीं दिया गया जिसने नगर परिषद को 20 करोड़ रुपए सालाना देने थे बल्कि उस एजेंसी को दे दिया जिसने 21 लाख रुपए सालाना देने की ऑफर की थी।

यह टेंडर 20 साल के लिए दिया गया। 20 साल में सरकार को कितना चूना लगता यह आप स्वयं ही अंदाजा लगा लें। अब शिकायतों के बाद इस टेंडर को रद्द किया गया है।

शहर में स्वागत द्वार के नाम पर हुए भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत पर बड़ी कार्रवाई हुई है। विभाग की ओर से जांच के बाद 20 करोड़ का ऑफर छोडक़र 21 लाख वार्षिक देने वाली एजेंसी के अनुबंध को अब रद्द कर दिया है।

शिकायतकर्ता की तरफ से उम्मीद जताई जा रही है कि इस मामले में आगामी कार्रवाई भी होगी। इस मामले में शासन व प्रशासन को कई बार शिकायत कर चुके गुरलाल सेखों ने कहा कि अभी तो टेंडर रद्द करने की कार्रवाई हुई है।

अब अगर इस मामले में सरकार को करोड़ों रुपयों का चूना लगाने की कोशिश करने वाले सभी आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो फिर से मामला अधिकारियों व सरकार के समक्ष उठाया जाएगा।


शिकायतकर्ता ने बताया कि जांच में सामने आया है कि टेंडर के दौरान अनियमितता बरत कर किसी विशेष को लाभ देने का प्रयास किया गया था। नगर परिषद की तरफ से फैसला लिया गया था कि शहर में विभिन्न स्थानों पर स्वागत द्वार लगाए जाएं।

इन पर विज्ञापन भी होंगे, जिनकी एवज में अनुबंध एजेंसी निर्धारित किरया वसूल करेगी। साथ ही एजेंसी की ओर से नगर परिषद को भी इससे आमदनी होनी थी।

ऐसे में नगर परिषद के टेंडर कॉल किया गया और दो एजेंसियों ने इसके लिए आवेदन किया। जिसमें से एक एजेंसी ने 20 करोड़ रुपए वार्षिक रुपए नगर परिषद को देेने की ऑफर की थी तो दूसरी एजेंसी ने 21 लाख रुपए वार्षिक देने की ऑफर की थी।

नगर परिषद ने 21 लाख वार्षिक देने वाली एजेंसी के नाम 20 साल के लिए ठेका जारी कर दिया। आरटीआई एक्टिविस्ट एवं शिकायतकर्ता गुरलाल सेखों ने बताया कि इसकी शिकातय मुख्यमंत्री तक पहुंची और ठेका देने की प्रक्रिया में नियमितताओं के आरोप भी लगे।

परंतु तत्कालीन अधिकारियों ने न तो कोई जांच की और न कोई कार्रवाई। अब इस मामले में जांच के बाद टेंडर रद्द करने की कार्रवाई की गई है। बता दें कि नगर परिषद के अधिकारियों द्वारा टेंडर प्रक्रिया में खेल किया गया था।

उक्त टेंडर की नगर परिषद की वेबसाइट पर गुप्त रूप से कॉल की गई। इसी लिए दो ही एजेंसियों ने आवेदन किया।

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