हरियाणा प्रदेश में अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण का मामला किसी भी प्रत्याशी का खेल बिगाडने और
बनाने का काम करने को आतुर है । सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त के फैसले के बाद जहां अनुसूचित जातियां
2 भागों में बट गई हैं, वहीं एक जाति को लेकर इनेलो और भाजपा में इस कदर भय का माहौल पैदा हो
गया है कि वह किसी हद तक भी जा रही हैं। भाजपा ने तो इस मामले में अक्लमंदी दिखाते हुए जहां
अपना एक प्रत्याशी तक का नामांकन वापस ले लिया है, वहीं जजपा ने इसके विपरीत कदम उठाते हुए च
ंद्रशेखर रावण का साथ लिया है। रानियां से आजाद प्रत्याशी के रूप में रणजीत सिंह चौटाला को भ्रम हो
गया कि एससी वर्ग उनके साथ हो गया है। जबकि इन सभी को इस बात की जानकारी तक नहीं कि वे
अनुसूचित जातियों में आरक्षण के लाभ से वंचित समाज का वोट बैंक कितना है । राजनीति के
विशेषज्ञयों का मानना है कि अब तो सुप्रीम कोर्ट तक इस बात को साबित कर चुका है कि अनुसूचित
जातियों में भी दो फाड हो चुके है। एक तरफ सिर्फ एक जाति है और दूसरी 48 जातियों का वह समूह
जो आरक्षण के संवैधानिक लाभ तक से वंचित रहा। अब राजनीतिक दलों को ये नहीं पता कि वे जिस
अनुसूचित जाति का वोट बैंक वे अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं उसकी एवेज में कितना बडा
नुकसान करवा रहे हैं। क्योंकि वे नहीं जानते कि जिस अगडे अनुसूचित जाति का वोट बैंक अपने पक्ष
में कर रहे हैं उस विशेष जाति का वोट बैंक कुल अनुसूचित जाति का केवल 32 प्रतिशत है जबकि वंचित
अनुसूचित जातियों का वोट बैंक 68 प्रतिशत है । ऐसे में इनेलो-बसपा के साथ मिलकर चाहे 38 फीसदी
वोट अनुसूचित जाति का लेने का प्रयास कर रही है, वह 68 फीसदी वंचित अनुसूचित जाति का वोट
गवा रहे हैं । इसी राह पर जजपा के साथ साथ स्वयं रंजीत सिंह चौटाला भी 68 फीसदी अनुसूचित जाति
का वोट बैंक गवा रहे हैं। भाजपा इस तथ्य को जानती थी कि सिरसा में एससी की विशेष जाति कम हैं
और वंचित अनुसूचित जातियों की संख्या अधिक है । इसी लिए उसने अपना प्रत्याशी तक वापस करवा
लिया है । ऐसे में चंद्रशेखर रावण को अपने हलके में बुला कर रणजीत सिंह चौटाला ने अपने पांव पर
कुलहाडी मार ली है।