चौ. देवीलाल किशोर अवस्था में ही कूद गए थे आजादी के संग्राम में

चौ. देवीलाल | Khabrain Hindustan | आजादी के संग्राम |
  • आजादी के बाद संयुक्त पंजाब व बाद में हरियाणा में बने राजनीति के महारथी
  • किसान व कमेरों के मसीहा, किंग मेकर, राजनीति की नर्सरी व संस्थान के नाम से भी जाने जाते हैं हरियाणा की अंतिम छोर में जन्मे चौ. देवीलाल ने प्रदेश और देश की राजनीति में अपनी ऐसी छोड़ी कि उनको हमेशा याद किया जाएगा।
  • राजनीति में उनके ऊंचे कद के बराबर पहुंच पाना असंभव तो नहीं कहा जा सकता पर बहुत ही ज्यादा मुश्किल जरूर कहा जा सकता है। वे एक साफ और सच्चे नेता के रूप में इस कदर उभरे कि जन नायक बने।
  • किसान और कमेरे वर्ग के मसीहा भी उन्हें कहा जाता है। आज भले ही कोई नेता किसी भी पार्टी से जुड़ा हो पर चौ. देवीलाल को नमन करता है और उनकी सोच और उनके कार्यों की प्रशंसा भी करता है।
  • चौ. देवीलाल चाहे वे किसी भी पद पर पहुंचे पर कभी जमीन से जुड़े लोगों के बीच में आने से कभी गुरेज नहीं किया। उनका सादापन उनकी छवि में हमेशा चार चांद लगाता रहा। उन्हें राजनीति की नर्सरी या संस्था कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति भी नहीं होगी। उन्होंने न केवल प्रदेश में बल्कि देश में अनेक नेता बनाए।
  • हरियाणा गठन में उनका अहम रोल रहा। उनके पुत्र स्वर्गीय प्रताप चौटाला हमेशा कहते थे कि चौ. देवीलाल किंग मेकर थे। कोई नेता उन्हें किंग मेकर कहता है तो कोई राजनीति का जादूगर भी। किसान और कमेरे वर्ग के मसीहा चौ. देवीलाल का राजनीति

में कद इतना बढ़ा कि देश की प्रधानमंत्री तक की कुर्सी उनका इंतजार करने लगी पर उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी का त्याग करके सबसे बड़े त्यागी होने का परिचय दिया।  चौ. देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1914 को हरियाणा के सिरसा जिले के गांव तेजा खेड़ा में हुआ था। उनकी मां का नाम शुगना देवी और पिता का नाम लेख राम सिहाग था।

लेख राम चौटाला गांव के जाट थे और उनके पास सैकड़ों एकड़ जमीन थी। उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चौ. लाल की पैतृक जड़ें राजस्थान के बीकानेर में हैं । जहां से उनके परदादा तेजाराम चले गए थे। उनके पिता लेखराम 1919 में चौटाला गांव में चले गए जब देवीलाल पांच साल के थे।

1928 में 16 साल की उम्र में लाल ने लाला लाजपत राय के प्रदर्शन में भाग लिया। वह अपनी 10वीं कक्षा के दौरान मोगा में देव समाज पब्लिक हाई स्कूल मोगा के छात्र थे। उस समय 1930 में कांग्रेस कार्यालय में गिरफ्तार किए गए

, उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने पंजाब के बादल गांव के एक अखाड़े में कुश्ती का प्रशिक्षण भी लिया । वह पहली बार 1952 में विधायक चुने गए। चौ. देवीलाल हरियाणा के एक समृद्ध राजनीतिक परिवार से आते हैं ।
उनके बड़े भाई साहिब राम सिहाग परिवार के पहले राजनेता थे जो 1938 और 1947 में हिसार से कांग्रेस के विधायक बने। चौ. देवीलाल के चार बेटे थे, प्रताप सिंह, ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह और जगदीश चंद्र।

जगदीश को छोड़कर सभी राजनीति में शामिल हो गए। उनके सबसे बड़े बेटे, प्रताप सिंह, 1960 के दशक में इंडियन नेशनल लोकदल से विधायक थे।
चौ. देवीलाल महात्मा गांधी के अनुयायी थे और ब्रिटिश राज से भारत की आजादी के संघर्ष में शामिल थे । चौ. देवीलाल ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी शिक्षा को दांव पर लगा दिया और पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। उन्हें एक साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और 8 अक्टूबर 1930 को हिसार जेल भेज दिया गया। उन्होंने 1932 के आंदोलन में भाग लिया और उन्हें सदर दिल्ली थाने में रखा गया। 1938 में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का प्रतिनिधि चुना गया। मार्च 1938 में उनके बड़े भाई कांग्रेस पार्टी के टिकट पर उपचुनाव में विधान सभा के सदस्य चुने गए। जनवरी 1940 में साहिब राम ने लाल और दस हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौजूदगी में सत्याग्रही के तौर पर गिरफ़्तारी दी। उन पर 100 रुपये का जुर्माना लगाया गया और 9 महीने की कैद की सजा सुनाई गई।

चौ. देवीलाल को 5 अक्टूबर 1942 को गिरफ्तार किया गया और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए दो साल तक जेल में रखा गया। उन्हें अक्टूबर 1943 में जेल से रिहा किया गया

और उन्होंने अपने बड़े भाई के लिए पैरोल पर बातचीत की। अगस्त 1944 में, तत्कालीन राजस्व मंत्री छोटू राम ने चौटाला गांव का दौरा किया।

उन्होंने लाजपत राय अलखपुरा के साथ मिलकर साहिब राम और चौ. देवीलाल दोनों को कांग्रेस छोड?र यूनियनिस्ट पार्टी में शामिल होने के लिए मनाने की कोशिश की। लेकिन दोनों कार्यकर्ता, समर्पित स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण, कांग्रेस पार्टी छोड़ने से इनकार कर दिया।

देश की आजादी के बाद 1950 के दशक में चौ. देवीलाल एक लोकप्रिय किसान नेता के रूप में उभर चुके थे और उन्होंने किसानों का आंदोलन शुरू किया। जिसके लिए उन्हें अपने 500 कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ़्तार किया गया।

कुछ समय बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपी चंद भार्गव ने एक समझौता किया और मुज़ारा अधिनियम में संशोधन किया गया। वे 1952 में पंजाब विधानसभा के सदस्य और 1956 में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1958 में वे सिरसा से चुने गए।

1980 से पहले हरियाणा विधानसभा की राजनीति
उन्होंने हरियाणा को एक अलग राज्य बनाने में सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभाई । 1971 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। 1972 के विधानसभा चुनावों में,

उन्होंने दो कांग्रेसी दिग्गजों, तोशाम निर्वाचन क्षेत्र में बंसी लाल और आदमपुर सीट पर भजन लाल के खिलाफ असफल रूप से चुनाव लड़ा। 1974 में उन्होंने रोडी निर्वाचन क्षेत्र से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा। 1975 में, इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की और देवीलाल सहित सभी विपक्षी नेताओं को 19 महीने की जेल हुई। 1977 में, आपातकाल समाप्त हो गया

और आम चुनाव हुए। वे भट्टू कलां से जनता पार्टी के टिकट पर चुने गए और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने । वे 1980 से 1982 तक संसद के सदस्य रहे और 1982 से 1987 के बीच राज्य विधानसभा के सदस्य थे।

उन्होंने लोकदल का गठन किया और हरियाणा संघर्ष समिति के बैनर तले न्याय युद्ध शुरू कि या और जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए।

1987 के राज्य चुनावों में, चौ. देवीलाल के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 90 सदस्यीय सदन में 85 सीटें जीतकर रिकॉर्ड जीत हासिल की। कांग्रेस ने अन्य पांच सीटें जीतीं। चौ. देवीलाल  दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1989 के संसदीय चुनाव में, वे सीकर राजस्थान और रोहतक हरियाणा दोनों जगहों से एक साथ चुने गए।

एक दिसंबर 1989 को वीपी सिंह ने चौ. देवीलाल को संसद के मध्य सदन में प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किया लेकिन चौ. देवीलाल के करीबी दोस्त चंद्रशेखर, जो जनता दल के भीतर वीपी सिंह के प्रधानमंत्री प्रतिद्वंद्वी थे, को प्रधानमंत्री पद देने से इनकार करने से कई पार्टी सदस्यों में आश्चर्य हुआ।

क्योंकि कुछ नेताओं ने उन्हें बताया कि चौ. देवीलाल प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आएंगे। वीपी सिंह कांग्रेस में कई पदों पर ईमानदारी से काम कर रहे थे और उन्होंने राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप पाए।

वे वीपी सिंह और चंद्रशेखर की गैर-कांग्रेसी सरकारों में 1989 से 1991 तक देश के उपप्रधानमंत्री बने। अगस्त 1998 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए । बाद में उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।

चौ. देवीलाल की पूरी उम्र राजनीति साफ-सुथरी रही। उनके नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी की। राजनीति के क्षेत्र में और सामाजिक क्षेत्र में उनके अनेक ऐसे किस्से हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व की सादगी व साफ भावनाएं प्रकट होती हैं।

चौ. देवीलाल का 6 अप्रैल 2001 को 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार नई दिल्ली में यमुना नदी के तट पर संघर्ष स्थल पर किया गया। किसान घाट किसानों के एक अन्य लोकप्रिय नेता, भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चरण सिंह की समाधि है ।

 1952 में बने पहली बार विधायक चौ. देवीलाल देश की आजादी के बाद 1952 व 1959 में सिरसा विधानसभा से विधायक चुने गए। उसके बाद 1962 में फतेहाबाद से विधायक बने।

1974 में रोड़ी से, 1977 में भट्टू कलां से, 1977 में रोड़ उपचुनाव में, 1982, 1985 व 1987 में महम से विधायक बने। इसके अलावा 1980 में सोनीपत से और 1989 में रोहतक व सीकर से सांसद बने। इसके अलावा वे राज्यसभा सांसद भी रहे।

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