ऐलनाबाद के सियासी मिजाज को समझने के लिए इसकी भौगोलिक और अतीत की जानकारी जुटाना जरुरी है। 2008 से पहले दड़बा हलका वजूद में था। परिसीमन के बाद यह हलका वजूद में था।
इसके कई दर्जन गांवों को ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में शामिल किया गया। दड़बा क्षेत्र को पैंतालिसा के नाम से जाना जाता है। इसकी वजह है इस पूरे क्षेत्र में 45 गांव है। यह पूरा क्षेत्र बागड़ी बेल्ट में आता है।
यह सारा इलाका ऐलनाबाद विधानसभा का हिस्सा है। इसके अलावा ऐलनाबाद में ऐलनाबाद शहर के अलावा ऐलनाबाद के साथ लगते गांव है। पूरा इलाका खेती से जुड़ा हुआ है। ङ्क्षसचाई और सेम की समस्या यहां के मुख्य मुद्दे हैं।
इन मुद्दों के बाद विकास का मुद्दा अहम रहता है। ऐलनाबाद शहर में करीब साढ़े 24 हजार वोट हैं जबकि कुल मिलाकर देखें तो ऐलनाबाद जाट बाहुल्य इलाका है। करीब 66 हजार मतदाता जाट समुदाय से हैं।
ऐलनाबाद विधानसभा सीट से अभय सिंह चौटाला 2010, 2014, 2019 और 2021 का उपचुनाव जीतकर चौका लगा चुके हैं। उनसे पहले चौधरी भागीराम 1977, 1982, 1987 में जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं।
राजस्थान से सटा ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र पर एक तरह से चौधरी देवीलाल और चौटाला परिवार का दबदबा रहा है। यही कारण है कि देवीलाल और चौटाला के नेतृत्व वाले सियासी दलों के उम्मीदवारों ने यहां 15 में से 11 चुनाव जीते।
इसके साथ ही ऐलनाबाद हलके के अतीत की बात करें तो यहां पर सबसे अधिक वोटों से जीत का रिकॉर्ड खुद ओमप्रकाश चौटाला के नाम है तो सबसे कम वोटों के अंतर से जीत का रिकॉर्ड चौटाला के छोटे भाई स्व. प्रताप चौटाला के नाम है।
1970 के उपचुनाव में चौटाला ने 31024 वोट हासिल किए जबकि उनके प्रतिद्वंदी आजाद उम्मीदवार पृथ्वी राज को 12,278 वोट मिले। ऐसे में चौटाला 18,746 वोटों के अंतर से विजयी हुए। 51 साल बाद भी यह रिकॉर्ड नहीं टूटा है।
इसी प्रकार से 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में प्रताप चौटाला ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए आजाद उम्मीदवार लालचंद खोड को 2647 वोटों के अंतर से हराया।
प्रताप को 20208 जबकि लालचंद खोड को 17,561 वोट मिले थे। कुल मिलाकर देखें ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में 1967 से लेकर 2019 तक दो उपचुनाव और 13 सामान्य चुनाव हुए हैं।
चुनाव-दर-चुनाव जीत के अंतर की बात करें तो साल 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी के लालचंद खोड ने 20816 वोट हासिल करते हुए कांग्रेस के ओमप्रकाश चौटाला को 5331 वोटों से पराजित किया था।
हालांकि यह चुनाव बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया और 1970 के उपचुनाव में चौटाला पहली बार विधायक चुने गए। इसी तरह से साल 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बृजलाल गोदारा ने 27266 वोट हासिल करते हुए
आजाद उम्मीदवार बीरबल को 12106 वोटों के अंतर से पराजित किया। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के भागीराम ने आजाद उम्मीदवार मनीराम केहरवाला को 7404 वोटों के अंतर से हराया।
1982 के विधानसभा चुनाव में लोकदल से चुनाव लड़ते हुए भागीराम को 32341 वोट मिले और कांग्रेस के मनीराम केहरवाला को 26523 वोट प्राप्त हुए। ऐसे में भागीराम 5818 वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए।
1987 के चुनाव में लोकदल से चुनाव लड़ते हुए भागीराम ने 43912 वोट हासिल करते हुए मनीराम केहरवाला को 15123 वोटों के अंतर से पराजित किया और जीत की हैट्रिक लगाई। 1991 के चुनाव में मनीराम केहरवाला विधायक बने।
उस चुनाव में कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए मनीराम को 39595 वोट मिले जबकि भागीराम को 25834 वोट आए। ऐसे में मनीराम 13761 वोटों के अंतर से विजयी हुए। 1996 के चुनाव में भागीराम समता पार्टी से विधायक चुने गए।
इस बार भागीराम ने 37101 वोट हासिल करते हुए हरियाणा विकास पार्टी के करनैल ङ्क्षसह को 7198 वोटों के अंतर से पराजित किया।
साल 2000 के चुनाव में भागीराम ने 50235 वोट लेते हुए कांग्रेस के ओमप्रकाश को 15054 वोटों से पराजित कर दिया। 2005 में डा. सुशील इंदौरा ने इनैलो से चुनाव लड़ा।
इंदौरा ने 49803 वोट प्राप्त किए और कांग्रेस के मनीराम केहरवाला को 21883 वोटों के अंतर से हराया। 2008 के परिसीमन के बाद यह हलका फिर से सामान्य हो गया। 2009 में ओमप्रकाश चौटाला ने उचाना के साथ ऐलनाबाद से भी चुनाव लड़ा।
दोनों जगह से विधायक बने। ऐलनाबाद से चौटाला ने 64567 वोट लिए और कांग्रेस के उम्मीदवार भरत सिंह बैनीवाल को 16,423 वोटों के अंतर से हराया। ऐलनाबाद से चौटाला ने त्यागपत्र दिया तो 2010 में यहां पर उपचुनाव हुआ।
उपचुनाव में अभय चौटाला ने 64813 लेते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार भरत सिंह बैनीवाल को 6227 वोटों के अंतर से पराजित कर दिया। 2014 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाजपा ऐलनाबाद में दूसरे स्थान पर रही।
इस चुनाव में अभय चौटाला को 69162 वोट मिले जबकि भाजपा के पवन बैनीवाल को 57623 वोट मिले। अभय चौटाला 11539 वोटों के अंतर से विजयी हुए।
2019 में अभय ङ्क्षसह चौटाला ने 57055 वोट लेते हुए भाजपा उम्मीदवार पवन बैनीवाल को 11922 वोटों के अंतर से हराया। 27 जनवरी 2021 को ऐलनाबाद सीट से अभय सिंह चौटाला की ओर से इस्तीफा दिए जाने के बाद अक्तूबर 2021 में यहां पर उपचुनाव हुआ।
उपचुनाव में अभय चौटाला ने भाजपा प्रत्याशी गोङ्क्षबद कांडा को 6739 वोटों के अंतर से हराया। ऐलनाबाद सीट पर सबसे अधिक हार का सामना मनीराम केहरवाला को करना पड़ा।
1977 के विधानसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल मनीराम केहरवाला को ही टिकट देना चाहते थे, क्योंकि मनीराम केहरवाला के पिता केसराराम चौधरी देवीलाल के दोस्त थे।
पर बाद में चौधरी देवीलाल ने जनता पार्टी से भागीराम को टिकट दे दिया। ऐसे में मनीराम ने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। भागीराम ने 21769 वोट हासिल करते हुए मनीराम को 14,365 वोटों के अंतर से पराजित किया।
1982 में मनीराम को दूसरी बार और 1987 में तीसरी बार भागीराम से हार का सामना करना पड़ा। 1991 में जाकर मनीराम को पहली बार विधायक बनने का अवसर मिला।
1991 में मनीराम ने कांग्रेस की टिकट पर जनता दल के भागीराम को 13,761 वोटों के अंतर से पराजित किया। मनीराम की तरह से ऐलनाबाद से भरत सिंह बैनीवाल को भी तीन बार हार का सामना करना पड़ा। 2009 में चौटाला ने उन्हें चुनाव में हराया।
2010 में अभय चौटाला के सामने उपचुनाव में हार हुई तो 2019 में तो भरत सिंह तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। विशेष पहलू यह है कि अब तक ऐलनाबाद में हुए 13 सामान्य और दो उपचुनावों सहित पंद्रह चुनाव हुए हैं।
इन चुनावों में सबसे अधिक पांच बार भागीराम विधायक बनने में सफल रहे। 1977 से लेकर 2005 तक ऐलनाबाद हलका सामान्य हलका रहा। इस अवधि के दौरान कुल 7 चुनाव हुए। 2005 के चुनाव को छोडक़र अन्य सभी 6 चुनावों में भागीराम ने चुनाव लड़े और पांच बार जीत दर्ज की।
भागीराम 1977, 1982, 1987, 1996 और साल 2000 में ऐलनाबाद सीट से विधायक चुने गए, जबकि 2005 में भागीराम की बजाय इनैलो ने डा. सुशील इंदौरा को टिकट दिया और वे यहां से विधायक चुने गए। साल 1967 से लेकर अब ऐलनाबाद के 55 वर्ष के सियासी सफर में ऐलनाबाद हलके को 1987 को छोडक़र कभी भी सत्ता में भागीदारी नहीं मिली है।
1987 में ऐलनाबाद से विधायक निर्वाचित हुए भागीराम चौधरी देवीलाल की सरकार में राज्यमंत्री बने थे। हालांकि साल 1991 में ऐलनाबाद से कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने गए मनीराम केहरवाला हरको बैंक के चेयरमैन रहे थे।
इसी विधानसभा क्षेत्र से साल 1970 और 2009 में विधायक बनने वाले ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन जब-जब वे ऐलनाबाद से विधायक चुने गए वे विपक्ष में रहे।
ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र हरियाणा गठन के बाद से वजूद में है। 1967 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस से प्रताप चौटाला ऐलनाबाद से पहले विधायक चुने गए। सरकार में उनको प्रतिनिधित्व नहीं मिला था। 1968 में विशाल हरियाणा पार्टी से लालचंद खोड विधायक चुने गए जबकि 1972 में कांग्रेस से बृजलाल गोदारा विधायक बने।
गोदारा जब विधायक बने तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री थे। इसी प्रकार से 1977 और 1982 में भागीराम विधायक बने। 1977 से लेकर 1979 तक चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री थे जबकि 1979 से 1982 तक भजनलाल मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस की सरकार थी।
1987 में पहली बार ऐलनाबाद को सत्ता में सीधी भागीदारी मिली। 1987 में ऐलनाबाद से लोकदल की टिकट पर विधायक चुने गए भागीराम देवीलाल की सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए।
उसके बाद अब तक ऐलनाबाद सत्ता में भागीदारी से वंचित है। 1991 में मनीराम केहरवाला कांग्रेस के विधायक चुने गए और वे हरको बैंक के चेयरमैन रहे। 1991 से 1996 तक भजनलाल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 1996 में समता पार्टी से भागीराम ऐलनाबाद से चौथी बार विधायक चुने गए
और उस समय प्रदेश में बंसीलाल की पार्टी हविपा की सरकार थी। साल 2000 में भागीराम इनैलो से विधायक निर्वाचित हुए। 2005 में इनैलो से डा. सुशील इंदौरा विधायक चुने गए।
2005 से 2009 तक कांग्रेस की सरकार रही और भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री थे। 2009 के सामान्य चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला विधायक बने।
उचाना और ऐलनाबाद से विधायक बनने वाले चौटाला ने ऐलनाबाद से त्यागपत्र दे दिया और जनवरी 2010 में अभय चौटाला ऐलनाबाद से विधायक चुने गए।
इसी प्रकार से 2014 और 2019 में अभय सिंह ही ऐलनाबाद से विधायक बने और इस दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार रही।
ऐलनाबाद में अब तक रहे विधायक
- प्रताप सिंह चौटाला 1967
- लाल चंद खोड 1968
(खोड का चुनाव अदालत ने रद्द कर दिया था) - ओमप्रकाश चौटाला 1970 (उपचुनाव) (2009)
- बृजलाल गोदारा 1972
- भागीराम (1977, 1982, 1987, 1996, 2000)
- मनीराम केहरवाला (1991)
- डा. सुशील इंदौरा (2005)
- अभय चौटाला (2010 एवं 2021 उपचुनाव) (2014, 2019)