साल 1936-37, संयुक्त पंजाब में विधानसभा चुनाव

चौटाला गांव के लेखराम सिहाग चाहते थे कि उनका छोटा बेटा विधायक बने, लेकिन उसकी उम्र चुनाव लड़ने के लिए जरूरी उम्र से डेढ़ साल कम थी।

ऐसे में आत्माराम को कांग्रेस से टिकट मिल गया। लड़के ने आत्माराम के लिए चुनाव प्रचार किया। वे जीत भी गए, लेकिन चुनाव में गड़बड़ी के चलते हाईकोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया।

1938 में उपचुनाव हुए। लड़के की उम्र अभी भी कम थी। इस बार कांग्रेस ने उसके बड़े भाई साहबराम को टिकट दे दिया। चुनाव का सारा काम छोटा भाई ही देख रहा था।

दूसरी तरफ यूनियनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार की ओर से हरियाणा के दिग्गज नेता चौधरी छोटूराम, चौधरी खिजर हयात खां तिवाना और सर सिकंदर हयात खान जैसी हस्तियों ने मोर्चा संभाल रखा था, लेकिन जीत मिली साहबराम को।

रातों-रात वो लड़का सियासी गलियारों छा गया। हर जगह उसकी चर्चा होने लगी।

1946 के चुनाव में लड़के की चुनाव लड़ने की उम्र हो चुकी थी, लेकिन इस बार भी टिकट उसके बड़े भाई मिला और वो जीत भी गए। देश आजाद हुआ, 1952 के पहले आम चुनाव के साथ ही पंजाब विधानसभा चुनाव हुए।

इस बार लड़के को सिरसा से कांग्रेस का टिकट मिल गया। टिकट बंटवारे का फैसला दिल्ली में हुआ था। संयोग से वो लड़का भी दिल्ली में ही था। जैसे ही उसे टिकट मिलने की खबर मिली, वो जीप से अपने गांव के लिए निकल पड़ा।

लड़का बेहद खुश था। उसके पिता की इच्छा पूरी होने जा रही थी, लेकिन गांव की सरहद पर पहुंचते ही पता चला कि पिता का देहांत हो गया है। लड़का सन्न रह गया। उसके पिता छोटे बेटे को विधायक बनता देखना तो दूर, उसको टिकट मिलने की खुशखबरी भी न सुन पाए।

लड़के ने चुनाव लड़ा और विधायक बना, लेकिन वो यहीं नहीं रुका। वो दो बाद हरियाणा का सीएम बना, दो बार देश का उप प्रधानमंत्री रहा। अपने दम पर कई सरकारें बनवाईं भी और गिराईं भी। ये लड़का कोई और नहीं चौधरी देवीलाल थे।

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