भगदड़ का खतरा नहीं फिर भी घोषणा में देरी
9 सितंबर 2024
भगदड़ का कोई खतरा नहीं फिर भी कांग्रेस की तीसरी लिस्ट में रानियां का नाम नहीं है। टिकटार्थी दिल्ली में डेरा जमाए बैठे है। क्षेत्र में पार्टी के प्रचार का कहीं नामोनिशान नहीं है।
चौधरी साहब ने रविवार को चुनावी बिगुल बजा दिया है और भाजपा प्रत्याशी शीशपाल कंबोज ने भी कार्यालय का उदघाटन कर चुनाव प्रचार का शुभारंभ कर दिया है।
शुभ मुहूर्त के अनुसार 10 सितंबर को अपना नामांकन पत्र भी दाखिल कर देगें।
चुनाव प्रचार में अब तक सबसे आगे इनेलो प्रत्याशी अर्जुन चौटाला है। चौटाला ने शहर और गांवों में जोरदार प्रचार अभियान चला रखा है।
दो सप्ताह पहले ही कार्यालय खोल चुके अर्जुन चौटाला 6 सितंबर को नामांकन पत्र भी भर चुके है हालांकि विधिवत रूप से 12 सितंबर को भी नामांकन पत्र का एक और सेट दाखिल किया जायेगा।
शहर में प्रचार की कमान नगरपालिका अध्यक्ष मनोज सचदेवा ने संभाल रखी है। मंजे हुए खिलाड़ी की तरह मनोज सचदेवा शहर में जगह-जगह अर्जुन चौटाला के कार्यक्रम करवा रहें है।
प्रभाव रखने वाले लोगों को चिन्हित कर पारिवारिक बैठके की जा रही है। इनेलो कार्यकर्ताओं के दिमाग में एक बात तो पुरी तरह बैठ चुकी है कि इस बार प्रदेश की सत्ता इनेलो के बिना संभव नहीं।
जोश में दावा तो यह भी कर रहें है कि अगले उप मुख्यमंत्री अर्जुन चौटाला ही होंगे।
बादल फार्म पर एक गुप्त बैठक को लेकर भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहें है। पुरे चुनाव की कमान बादल फार्म पर बैठ कर कर्ण चौटाला ने संभाल रखी है।
रानियां से ज्यादा लोगों की नजर सिरसा पर है। मान लो अगर कांग्रेस गोकुल सेतिया को टिकट नहीं देती है तो वे किधर के रहेगें।
अगर कांग्रेस गोकुल सेतिया को प्रत्याशी बनाती है तो छात्र जीवन से ही कांग्रेस की सेवा में जुटे नवीन केडिया, राजकुमार शर्मा और वीरभान मेहता का राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
हमें कम आंकना कांग्रेस की भूल होगी कि चेतावनी ने असर दिखा दिया है। आम आदमी पार्टी को पहले चार सीट देने की जिद छोड़ कांग्रेस अब पांच सीट देने पर राजी हो गई है।
औपचारिक घोषणा में संख्या छह भी हो सकती है। सपा को एक सीट तो पक्की मानी जा रही है। समझौता सिरे चढ़ने के पीछे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और सुशील गुप्ता की दोस्ती ने अहम भूमिका निभाई है।
साफ बात है कि आजकल किसी का दीन ईमान तो है नहीं। भजन गायक को ही देख लो, पहले चंडीगढ़ से लोकसभा की टिकट चाहते थे, नहीं मिली। बाद में पंचकुला विधानसभा पर नजर गाढ़ ली। इच्छापूर्ति न होने पर अब सुर बदल लिए।