चुनाव तो लड़ेंगे ही चौधरी साहब, विकल्प खुले
बडबोलापन चौधरी साहब का नुकसान कर गया, हालांकि बाद में संयम रखा, मगर जो तीर कमान से निकल चुका था, उसकी भरपाई नहीं हो पाई। चौधरी साहब भी बड़े नेता है, हार तो मानने वाले नहीं।
रात को टिकट कटा, सुबह ही कोठी समर्थक जुट गए, डंके की चोट पर ऐलान कर डाला है कि चुनाव तो लड़ेंगे ही, वो भी रानियां हलके से। भाजपा से किनारा तो कर लिया है लेकिन अन्य विकल्प खुले छोड़ दिए है।
चौधरी साहब को सलाह देना सूरज को दिया दिखाने के समान है। देश व प्रदेश की सत्ता में सर्वेसर्वा रह चुके हैं। सारी उम्र राजनीति मेें खपा दी।
चौधरी साहब से ज्यादा राजनीतिक समझ यहां और किसी में तो है नहीं, पर मौके की नजाकत ऐसी है कि कयास लगाने की बात तो छोड़ो हर छुटभैया सलाह भी देने लगा है।
एक बात तो है इस बार पिछले विधानसभा चुनाव वाले हालात तो है नहीं, चौधरी साहब को चाहने वालों में निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए फिलहाल वो जोश नहीं दिखता।
चौधरी साहब के अधिकतम समर्थक कांग्रेस पृष्ठभूमि के हंै। चल बल रखने वाले अनेकों समर्थकों ने चौधरी साहब के साथ-साथ कांग्रेसी नेताओं के साथ भी थोड़ा बहुत संपर्क बनाए रखा है।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के प्रति उम्मीदें जगी है, ऐसे समर्थकों की प्रबल इच्छा है कि चौधरी साहब को कांग्रेस का टिकट मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जायेगा।
चौधरी साहब ने भी रास्ता खुला छोड़ रखा है। बड़े राजनीतिज्ञों के बड़े संपर्क होते है। कांग्रेस की लिस्ट जारी होने तक कुछ भी संभव है।
कभी कांग्रेस के सर्वेसर्वा से गुप्त बैठक कर चौधरी साहब ने देश की सता ही बदल दी थी। रूतबा तो ऐसा था पहली बार कांग्रेस में शामिल होते ही किसान सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए थे।
अंदर की बात तो यह है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने चौधरी साहब को मनाने का प्रयास भी किया है, राज्यपाल के पद की ऑफर भी बताई जाती है।
डबवाली से चुनाव लड़ने की भी ऑफर थी, मगर चौधरी साहब ने ठुकरा दी। 8 सितंबर को चौधरी साहब शक्तिप्रदर्शन करेगें।
अगला ऐलान भी उसके बाद ही होगा। राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं। चर्चा तो यह भी है कि परिवार में भी कुछ खिचड़ी पक रही है।
साफ बात है कि अगले तीन दिन रानियां हलके लिए बेहद महत्वपूर्ण होंगे। हर रोज स्थिति बदलने के कयास लगाये जा रहे हैं।