किसानों का विरोध और बीजेपी से लोगों की नाराजगी का कांग्रेस को होगा सीधा लाभ
फतेहाबाद, 12 जुलाई। फतेहाबाद जिले की तीनों विधानसभा सीटें (फतेहाबाद, रतिया व टोहाना) 2019 व 2014 के चुनावों में कांग्रेस हार गई थी।
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में फतेहाबाद व रतिया से बीजेपी जीती थी जबकि टोहाना से जेजेपी के प्रत्याशी ने सीट जीती थी। इसी प्रकार वर्ष 2014 के चुनावों में फतेहाबाद व रतिया से इनेलो तथा टोहाना से बीजेपी ने जीत हासिल की थी।
पर इस बार समीकरण बदलने की संभावनाएं लग रही हैं। फतेहाबाद जिले से इस बार लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस को बढ़त मिलने की संभावनाएं हैं।
जिसके चलते कांग्रेस में टिकट के मारामारी शुरू हो चुकी है। पर कांग्रेस सर्वे में टॉप रहने वाली यानि कि विनिंग कैंडिडेट पर ही दांव खेलेगी। सभी हलकों में कांग्रेस के साथ-साथ अन्य पार्टियों के टिकटार्थियों में भी कदमताल होती देखी जा सकती है।
हालांकि किसानों के विरोध व जनता की बीजेपी से नाराजगी के चलते बीजेपी की स्थिति बेहतर नहीं है बावजूद इसके पार्टी में टिकटार्थियों में होड़ मची हुई है।
दो बार लगातार चुनाव हारने पर प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा की टिकट कटने की संभानाएं
फतेहाबाद विधानसभा हलका से वर्ष 2019 में बीजेपी के दुड़ा राम व 2014 में इनेलो के बलवान सिंह दौलतपुरिया चुनाव जीते थे। इस बार दुड़ा राम की स्थिति बेहतर नहीं है।
कांग्रेस की तरफ से बलवान सिंह दौलतपुरिया को टिकट मिलने की संभानाएं है। जबकि की टिकट की दौड़ में प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा, डॉ. विरेंद्र सिवाच, विनित पुनियां के अलावा कई और नेता भी हैं।
इस बार फतेहाबाद हलका में परिस्थितियां बदलेंगे और कांग्रेस को बढ़त मिलने की प्रबल संभानाएं जताई जा रही है। इनेलो किसी पंजाबी वर्ग पर दांव खेल सकती है। जजपा के ज्यादातर नेता कांग्रेस में चले गए हैं।
कांग्रेस अगर फार्मूले के अनुसार लगातार दो बार चुनाव हारने वाले नेता की टिकट काटती तो प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा रेस से बाहर हो सकते है। बता दें कि प्रहलाद सिंह गिल्लांखेड़ा 2019 में तीसरे व 2014 में चौथे स्थान पर रहे थे।
हाल ही लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली बढ़त को बरकरार रखने के लिए किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेगी और सर्वे में लोगों द्वारा बताए गए बेहतर प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा जा सकता है।
बलवान सिंह दौलतपुरिया जाट समुदाय से हैं और बाकी पार्टियां नोन जाट पर दांव खेलेंगे तो बलवान दौलतपुरिया को फायदा मिल सकता है।
रतिया: जरनैल की बजाय चरणजीत सिंह रोड़ी हो सकते हैं उम्मीदवार
रतिया हलका से भी पिछले दो चुनावों में कांग्रेस का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 के चुनावों में यहां से बीजेपी के लक्षमण नापा ने चुनाव जीता था। इससे पहले 2014 में इनेलो के रविंद्र बलियाला विधायक बने थे।
इस बार बीजेपी की टिकट के लिए मौजूदा विधायक लक्षमण नापा मजबूत दावेदार है। इसके अलावा पूर्व विधायक रविंद्र बलियाला भी टिकट की दौड़ में है। कुछ और नेता भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं पर वे टिकट से काफी दूर प्रतीत हो रहे हैं।
बात अगर कांग्रेस की करें तो कांग्रेस अगर लगातार दो बार चुनाव हारने वाले नेताओं की टिकट काटती है तो जरनैल सिंह की टिकट कटना लगभग तय है। वहीं सिरसा के पूर्व सांसद व कालांवाली से पूर्व में विधायक रहे चरणजीत सिंह रोड़ी ने भी रतिया में डेरे जमा लिए हैं।
हो सकता है पार्टी उन पर दांव खेले। चूंकि रतिया हलका पंजाबी बेल्ट है इस लिए पगड़ी वाले चेहरा को ही मैदान में उतारना कांग्रेस की पहली पसंद होगी।
चरजीत सिंह रोड़ी रतिया हलका में एक्टिव हो गए हैं। हो सकता है पार्टी हाई कमान की तरफ से उनको कोई इशारा हुआ हो तब उन्होंने रतिया में अपनी गतिविधियां शुरू की हों।
टोहाना में बीजेपी के पास नहीं कोई मजबूत चेहरा
टोहाना से भी कांग्रेस पिछले दो चुनावों में हार का मुंह देख चुकी है। वर्ष 2019 के चुनावों में यहां से जेजेपी के प्रत्याशी देवेंद्र बबली ने बीजेपी के सुभाष बराला को बड़े मार्जिन से हराया था।
अब सुभाष बराला राज्यसभा में चले गए हैं। बबली ने भी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का खुल कर समर्थन करके कांग्रेस में जाने के संकेत दे दिए हैं। ऐसे में बीजेपी के पास कोई मजबूूत चेहरा नहीं बचा।
वहीं कांग्रेस के पास टिकटार्थियों की लंबी कतार नजर आ रही है। यहां से कांग्रेस की टिकट के लिए कृषि मंत्री रहे परमवीर सिंह, जेजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए निशान सिंह, विक्रम सिंह, भीम सिंह, हरपाल सिंह बुडानिया रेस में हैं।
देवेंद्र बबली भी अगर कांग्रेस ज्वाइन करते हैं तो टिकट की शर्त पर ही करेंगे। इनेलो की तरफ से इस बार पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के दौहते कुनाल कर्ण सिंह मैदान में उतर सकते है।
आम आदमी पार्टी से सुखविंदर सिंह गिल के चुनाव लडऩे की प्रबल संभावनाएं नजर आ रही हैं। अब देखना यह कि आने वाले चुनावों में जनता जनार्दन का क्या मूड रहेगा।
बाकी देखने की बात यह है कि टोहाना की हर बार की सरकार में किसी न किसी एंगल से जुड़ाव जरूर रहता है।
फतेहाबाद की तीनों सीटों पर लगातार दो बार चुनाव हारने वाली कांग्रेस इस बार मजबूत क्यों
वर्ष 2019 व 2014 के चुनावों में फतेहाबाद जिले की तीनों सीटों पर कांग्रेस चुनाव हारी। बावजूद इसके इस बार दो सीटें फतेहाबाद और रतिया जीतने की कगार पर है।
टोहाना सहित तीनों सीट ही कांग्रेस जीत जाए तो भी कोई आश्चर्य नहीं होगा। कारणों की बात करें तो बीजेपी के दस साल के शासन से जनता नाराज है। जिसका परिणाम लोकसभा चुनावों में देखने को मिला।
इस लिए लोग बीजेपी की बजाय किसी दूसरी पार्टी की तरफ जाएंगे। ऐसे में जेजेपी की तरफ जाने की संभानाएं इस लिए नहीं बनती क्योंकि जेजेपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार चलाई। जिन लोगों की बीजेपी से नाराजगी है उनकी जेजेपी से भी उतनी ही नाराजगी है।
बाकी जेजेपी के पास तीनों सीटों पर मजबूत चेहरा नहीं है जो चुनावी माहौल को अपने पक्ष में कर सके। इसी प्रकार इनेलो की बात करें तो मौजूदा समय में इनेलो के पास महज एक ही विधायक है।
ऐसे में जनता को लग रहा है कि इनेलो की सरकार बनने की संभावनाएं न के बराबर है। तो बीजेपी, जेजेपी व इनेलो से नाराज या कटने वाले वोट कांग्रेस में ही जाने की संभानाएं है।
लोकसभा चुनावों में जाट, किसान व दलित वोट कांग्रेस की तरफ डायवर्ट हुआ तो बीजेपी का काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा तीनों ही सीटों पर किसानों का बहुत प्रभाव है ऐसे में बीजेपी के प्रत्याशियों के जीत की संभावनाएं बहुत कम हो जाती है।
इसके अलावा लोगों को लग रहा है कि इस बार सरकार कांग्रेस की बन सकती है। सरकार बनने की हवा के साथ भी एक बड़ा वोट बैंक डायवर्ट होता है।