चौ. देवीलाल के कारण देश भर में पहचान बनी थी हलका रोड़ी की, अब बना कालांवाली

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राजेंद्र देसूजोधा के पार्टी में आने से बलकौर सिंह को टिकट मिलने की संभावनाएं हुई कम

कांग्रेस के मौजूदा विधायक शिशपाल केहरवाला प्रबल दावेदार, बावजूद इसके कई नेता टिकट की ट्राई में

सिरसा। हलका कालांवाली महज 15 साल की ही हुआ है। वैसे तो प्रदेश के 90 हलकों में एक है पर इसके इतिहास को देखें तो यह पूरे प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा में आया हुआ है।

क्योंकि कालांवाली से पहले यह हलका रोड़ी हलका था। रोड़ी हलका से ही 1977 में चौ. देवीलाल की राजनीति की चमक बढ़ी थी।

इस चुनाव में कांग्रेस की केंद्र सरकार तक ने चुनाव जीतने के लिए ताकत झोंक दी थी पर चौ. देवीलाल के आगे कांग्रेस टिक नहीं पाई।

देश भर में चुनाव की चर्चाएं हुर्ईं। अब तक भी लोग 1977 के रोड़ी चुनाव की चर्चाएं करते हैं। इस लिए यह हलका खास बन गया।

उसके बाद 1996 में चौ. ओमप्रकाश चौटाला यहां से चुनाव जीते। और जब वह मुख्यमंत्री बने से यहीं से विधायक थे। वर्ष 2000 में ओमप्रकाश चौटाला फिर रोड़ी से चुनाव जीता और वे सीएम बने।

उसके बाद उन्होंने रोड़ी से त्यागपत्र दिया और उप चुनाव में अभय सिंह चौटाला विधायक बने। सीएम का हलका होने के कारण इस हलके की तूती बोलती थी

और यह हकला चौटाला परिवार का गढ़ बन गया।

वर्ष 2009 में रोड़ी हलका का नाम कालांवाली हो गया।

कालांवाली हलके से पहले चुनाव में चरणजीत सिंह रोड़ी ने इनेलो के समर्थन से शिरोमणी अकाली दल की टिकट पर जीत हासिल की।

इसके बाद 2014 में इनेलो के समर्थन से शिरोमणी अकाली दल की टिकट पर बलकौर सिंह ने चुनाव जीता।

और लंबे अरसे के बाद 2019 में यहां से कांग्रेस को विजय मिली। शिशपाल केहरवाला यहां से विधायक बने।

चौटाला परिवार से चौ. देवीलाल ने एक बार, चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने तीन बार, चौ. रणजीत सिंह व चौ. अभय सिंह चौटाला ने एक-एक बार यहां से चुनाव जीता।

वर्ष 2009 में यह हलका एससी वर्ग के आरक्षित हो गया उसके बाद दो बार इनेलो के समर्थन वाले यहां से विधायक बने।

यानि कि चौटाला परिवार के सदस्य यहां से छह बार और दो उनके समर्थन वाले प्रत्याशी विधायक बनने में सफल रहे। इस लिए इस हलके को चौटाला का गढ़ भी माना जाता है।

अब विधानसभा 2014 के चुनाव निकट हैं। ऐसे में राजनीतिक गतिविधियां जोर पकडऩे लगी हैं।

सभी पार्टियां जोड़तोड़ में जुट गई हैं। ऐसे में कांग्रेस की बात करें तो यहां से मौजूदा विधायक शिशपाल केहरवाला प्रबल दावेदार हैं।

फिर भी कुछ नेता टिकट के लिए दावेदारी ठोक रहे हैं। बात अगर बीजेपी की करें तो पूर्व विधायक बलकौर सिंह कालांवाली से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे

पर अब राजेंद्र देसूजोधा के बीजेपी में आने के बाद उनकी संभावनाएं कम हो गई है।

यही कारण है कि बलकौर सिंह मुख्यमंत्री के उस कार्यक्रम में नहीं पहुंचे जिसमें राजेंद्र देसूजोधा को पार्टी में शामिल किया गया था।

बीजेपी की तरफ से पूर्व विधायक मनीराम केहरवाला के पुत्र डॉ. सागर केहरवाला भी टिकट के दावेदारों की सूची में हैं।

इनेले की तरफ से मघर सिंह व मास्टर गुरतेज सिंह को टिकट मिलने की संभावनाएं बताई जा रही है।

चरणजीत सिंह रोड़ी, बलकौर सिंह इनेलो की नर्सरी से निकलकर दूसरी पार्टियों में चले गए हैं।

अब इनेलो नए चेहरे को मैदान में उतारेगी। जेजेपी के पास भी कोई बड़ा चेहरा नहीं है।

इनेलो की तरफ से संभावित प्रत्याशियों की सूची में जजपा के निर्मल सिंह मलड़ी भी कांग्रेस में शामिल हो चुके है।

कालांवाली हलके में टिकटों के बंटवारे को लेकर काफी उथल-पुथल होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।

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