जब संसद में विपक्ष के नेता का माइक बंद हो जाता है तो वे माइक ऑन करने के लिए कहते हैं और अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हैं ।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा संसद के सामने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया जाता है कि माइक का बटन उनके पास नहीं होता।
देश के संवैधानिक पद पर बैठे इतने जिम्मेदार व सम्माननीय व्यक्ति सदन व पूरे देश के सामने यह कह सकते हैं कि माइक का बटन उनके पास नहीं होता तो फिर बटन किसके पास है।
जब संसद में माइक के कंट्रोल की जिम्मेवारी ही नहीं ली जाती तो पेपर लीक मामलों पर चर्चा करवाना और इन मामलों में शामिल लोगों को सजा दिलवाना अपने आप में बेमानी लगता है।
यदि लोकसभा में माइक का कंट्रोल लोकसभा अध्यक्ष के पास नहीं है तो यह बहुत ही हास्यास्पद बात है।
आज देश में पेपर लीक का मामला बच्चे बच्चे की जुबान पर है क्योंकि यह मामला देश की कर्णधार युवा पीढ़ी के भविष्य का मामला है।
विपक्षी नेता राहुल गांधी द्वारा यह मांग की गई थी कि इस मुद्दे पर संसद में बहस होनी चाहिए लेकिन उनका माइक बंद किया जाना बहुत ही गंभीर मामला हो जाता है।
यह केवल संसद में माइक बंद करने तक का मामला ही नहीं बल्कि देश की जनता का मुंह बंद करने का मामला है क्योंकि विपक्ष जनता की आवाज होता है।
पेपर लीक मामले की गंभीरता को देखते हुए देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी दोनों सदनों को संबोधित करते हुए इस मामले का केवल जिक्र ही नहीं किया बल्कि इस मामले पर फोकस करते हुए यह कहा कि पेपर लीक मामले की गहराई से जांच करवाई जाएगी।
संसद में इस मामले की चर्चा करना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि वर्तमान नेतृत्व वाली सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल में 65 पेपर लीक हुए हैं जबकि 10 सालों के दौरान 70 भर्ती व प्रवेश परीक्षाओं के पेपर लीक के मामले सामने आ चुके हैं ।
सरकार ने इस पर संज्ञान लेते हुए एंटी पेपर लीक एक्ट भी बनाया है ताकि पेपर लीक मामले में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। एंटी पेपर लीक कानून फरवरी 2024 में संसद से पारित हुआ था।
इस कानून को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मंजूरी दे चुकी हैं। केंद्र सरकार ने इस कानून का नोटिफिकेशन कर 21 जून को देशभर में लागू कर दिया है।
इस कानून के लागू होने के बाद पेपर लीक के दोषियों को तीन साल से 10 साल तक की सजा और 10 लाख से एक करोड़ तक के जुर्माने का प्रावधान है।
हालांकि सरकार का यह कदम काबिल -ए- तारीफ है। मात्र कानून बना देने से काम चलने वाला नहीं है बल्कि कानून को प्रभावी तौर पर अमल में लाया जाना जरूरी है।
इस पेपर लीक मामले का नेक्सस कहां-कहां तक फैला हुआ है। इसकी संसद में चर्चा होना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। इस पेपर लीक मामले में कई राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखंड व महाराष्ट्र का नाम सामने आ चुका है।
नीट और नेट, एन-सी ए टी तथा सी एस आई आर, नीट पीजी जैसी परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का लीक होना, रद्द व स्थगित होना युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। इससे देश के युवाओं का इस प्रकार की एजेंसियों से विश्वास उठा है।
देश के 40 लाख युवाओं का भविष्य अंधकार में गया है और इन युवाओं का विश्वास डगमगाया है, जिन बच्चों ने सालों साल लगाकर अपनी मेहनत से परीक्षाओं की तैयारी की थी, एन टी ए ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है ।
बच्चों को यह तक नहीं पता कि आगे उनके साथ क्या होगा। युवाओं के लिए यह एक राष्ट्रीय त्रासदी से कम नहीं है। पेपर लीक की इन घटनाओं से जहां एनटीए नामक एजेंसी की सांठगांठ और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ है ,वही केंद्रीय सरकार और शिक्षा मंत्रालय की जबरदस्त फजीहत हुई है।
यह देश को शर्मसार करने वाली घटनाएं हैं। हालांकि सरकार ने इस नीट पेपर लीक मामले की जांच सीबीआई को दे दी है। इस मामले में संलिप्त कई लोगों की धर पकड़ भी हुई है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा एन टी ए के डायरेक्टर जनरल सुबोध कुमार सिंह को सस्पेंड कर उनकी जगह प्रदीप सिंह खरोला को नया डायरेक्टर जनरल नियुक्त किया है।
देश की जनता, युवाओं विपक्षी पार्टियों की यह मांगे की इस नीट पेपर लीक घोटाले का मास्टरमाइंड सामने आना चाहिए और सरकार का भी है दायित्व बनता है कि वह असली मास्टरमाइंड तक पहुंचे।
इस सब के बाद देश की जनता को सरकार ने विश्वास दिलाना है कि केंद्र सरकार इस मामले की तह तक जाएगी और बड़े से बड़े ताकतवर व्यक्ति तक कानून अपना शिकंजा कस पाएगा।
यदि पेपर लीक मामले पर संसद में चर्चा होती है तो देश की जनता का संसदीय प्रणाली और लोकतंत्र पर विश्वास और प्रगाढ होगा। संसद में चर्चा के बाद ही देश के सामने दूध का दूध और पानी का पानी होगा।
सतीश मेहरा
पूर्व उपनिदेशक
हरियाणा राजभवन