बीजेपी कोन्फिडेंस में कि सरकार को कोई खतरा नहीं
चंडीगढ, 10 जून। लोकसभा चुनावों के परिणाम के बाद हरियाणा में विधानसभा के समीकरण बदलने की संभावनाएं बनने लगी हैं।
हरियाणा में बीजेपी की सरकार गिराने की जुगत में कांग्रेस सक्रिय हो चुकी है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा लगातार दावा किया जा रहा है कि हरियाणा में भाजपा सरकार अल्पमत में है।
इसी को लेकर चंडीगढ में कांग्रेस विधायक दल की बैठक शुरू हो गई है।
बैठक की अध्यक्षता पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा कर रहे हैं।
इस बैठक में विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने के अलावा हरियाणा में अल्पमत में चल रही भाजपा सरकार को बर्खास्त करने का दबाव बनाए जाने की संभावना है।
कांग्रेस विधायकों की तरफ से विधानसभा भंग करने के लिए राज्यपाल से मिलने का समय मांगा जा सकता हैं।
अगर राज्यपाल ने समय नहीं दिया तो कांग्रेस जिला मुख्यालयों पर आंदोलन कर सकती है।
बताया जा रहा है कि इस मीटिंग में कांग्रेस के चार नवनिर्वाचित सांसद रोहतक से सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, अंबाला से वरुण चौधरी, हिसार से जेपी और सोनीपत से सतपाल ब्रह्मचारी बैठक में भी उपस्थित हैं।
जो हुड्डा गुट के बताए जा रहे हैं। वहीं सिरसा से एसआरके गुट की कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा इस मीटिंग में नहीं पहुंचीं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी के करनाल विधानसभा का उप चुनाव जीतने के बाद भी बीजेपी के पास सदन में बहुमत कम होने का कांग्रेस दावा कर रही है।
हलोपा के गोपाल कांडा और एक निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत का साथ होने के बाद भी संयुक्त विपक्ष के सामने भाजपा बहुमत के आंकडे से एक नंबर दूर है।
पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा दावा कर रहे हैं कि हरियाणा में बीजेपी सरकार अल्पमत में है, इसलिए विधानसभा भंग होनी चाहिए।
इधर, सदन में कांग्रेस-जजपा और इनेलो अगर एकजुट हो गए तो सूबे की बीजेपी सरकार की मुश्किलें बढ सकती हैं।
जजपा नेता दुष्यंत चौटाला भी राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर सरकार से फ्लोर टेस्ट कराने की मांग कर चुके हैं।
बता दें कि हरियाणा में 90 विधायकों वाली विधानसभा में अब 87 विधायक ही बचे हैं।
सिरसा की रानियां विधानसभा से रणजीत सिंह के इस्तीफे, बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक राकेश दौलताबाद के
निधन से और अंबाला लोकसभा सीट से मुलाना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी के अंबाला लोकसभा चुनाव
जीतने के बाद यह स्थिति बनी है। 87 सदस्यीय इस विधानसभा में अब बहुमत का आंकडा 46 से गिरकर 44 हो गया है।
जबकि मौजूदा स्थिति की बात करें तो भाजपा के पास 41 विधायक हैं।
इसके अलावा उन्हें हलोपा विधायक गोपाल कांडा और एक निर्दलीय नयनपाल रावत का समर्थन प्राप्त है।
भाजपा के पास 43 विधायक हैं। वहीं विपक्ष में भाजपा से एक ज्यादा यानी 44 विधायक हैं। इनमें कांग्रेस के 29, जजपा के 10,
निर्दलीय 4 और एक इनेलो विधायक शामिल हैं। अगर ये सब एक साथ आ जाते हैं तो फिर सरकार अल्पमत में आ सकती है।
वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो बीजेपी सरकार ने 13 मार्च को बहुमत साबित किया था।
जिसके बाद 6 महीने तक फिर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता।
इतना समय बीतने के बाद अक्टूबर-नवंबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं।
फिर ऐसी मांग की जरूरत नहीं रहेगी। इसके साथ ही जजपा ने अपने 2 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता के यहां याचिका दायर की हुई है।
अगर जजपा के 2 विधायकों की सदस्यता रद्द हो जाती है
तो फिर सरकार के पक्ष में 43 और विपक्षी विधायकों की संख्या गिरकर 42 हो जाएगी, जिससे सरकार फिर बहुमत में ही रहेगी।