सिरसा। लोकसभा चुनावों में इस बार मतदाताओं की फिजां बदली-बदली सी नजर आ रही है। इस बार दो प्रकार के वोटर परिणाम तय करेंगे। एक वर्ग जो बज रहा है और दूसरा जो चुप्पी साधे हुए है।
अब देखना यह है कि इन दोनों वर्गों में कौन किस पर भारी पड़ता है। सिरसा के अलावा हरियाणा की ज्यादातर लोकसभा सीटों पर स्थिति कुछ इसी प्रकार की देखने का मिल रही है।
दरअसल सत्ता से 10 दूर रहने के बाद कांग्रेस इस बार ऐसे नेरेटिव सेट कर गई है जिससे उनके वोटर जमकर खनकने लगे है। इसके उल्ट बीजेपी का मतदाता शांत होकर माहौल और वक्त के तकाजे का आंकलन कर रहा है।
अब मतदान के दौरान इन दो वर्गों में से एक ने बाजी मारनी है। इसमें खनकने वाले कामयाब होंगे या फिर साइलेंट रहने वाले यह तो वक्त ही बताएगा।
पर फिलहाल कांग्रेस के कार्यकार्ताओं को ओवर कोंफिडेंस में देखकर लोगों में नाकारात्मक असर पड़ सकता है इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
जब से लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई है तभी से बीजेपी मैदान में उतर कर प्रचार में जुट गई थी। इसके काफी दिन बाद कांग्रेस के उम्मीदवार घोषित हुए थे। उसके बाद कांग्रेस भी मैदान में आई।
कांग्रेस के कार्यकर्ता इस कद्र जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे है कि वे भौहें तान कर गलियारों अपने तेवर दिखाने लगे है। बस जनता इसी को पसंद नहीं करती।
वैसे भी सिरसा से अब तक कुमारी सैलजा के पक्ष में न तो कोई रैली हुई है और न ही सैलजा के विरोधी माने जाने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब तक सिरसा लोक सभा क्षेत्र में आए है।
इसके उल्ट बीजेपी के मौजूदा मुख्यमंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री विधानसभा हलका स्तर पर रैलियां कर रहे हैं।
इसके अलावा प्रधानमंत्री की रैली की भी संभावना है। ऐसे में बीजेपी गोरिला युद्ध की भांति इस बार मौन रह कर आक्रमण करने की रणनीति में दिख रही है।
इसका बात का खुलाया तो चार जून को मतगणना के बाद ही हो पाएगा कि इस बार बजने वाला वर्ग हावी रहेगा या फिर साइलेंट रहने वाला।
पर मौजूदा समय में दोनों ही मुख्य पार्टियां एक-दूसरे को सहमात देने के लिए हर प्रकार के खेल में अपना जोर अजमाइश करती दिख रही है।