हरियाणा में शुरू से ही होती रही आधी आबादी की अनदेखी, सूबे की आधी सीटों पर अब तक कोई महिला नहीं बनी सांसद

सांसद | Khabrain Hindustan | Haryana

चंडीगढ। केंद्र सरकार द्वारा नारी वंंदन विधेयक पास करने के बाद स्वाभाविक है कि महिलाओं की लोक सभा में 33 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने से महिला सशक्तिकरण को बल मिलेगा । इससे पूर्व हरियाणा में महिलाओं को उनकी राहनीति में बनती भागीदारी से वंचित रखा जाता रहा है ।

अब नारी वंंदन विधेयक पास होने के बाद महिलाओं का संसद की चौखट तक पहुंच पाने का सपना पूरा हो सकेगा। एक तरफ जहां देश भर में पुरुष प्रधान समाज से राजनीति में आधी आबादी को जनसंख्या के अनुपात के अनुसार दरकिनार किया जाता रहा वहीं हरियाणा में भी आजादी के बाद से अब तक महिलाओं को कोई खास तवज्जो नहीं मिल पाई है।


प्रदेश की कुछ ऐसी लोक सभा सीटें ऐसी हैं जहां से अब तक एक भी महिला को सांसद बनने का अवसर नहीं मिला है। इनमें फरीदाबाद, गुडगांव, हिसार, रोहतक व सोनीपत सीट शामिल है। इन सीटों से 1952 से लेकर 2019 तक कोई महिला सांसद नहीं बनी ।

अन्य सीटों पर भी महिलाएं सांसद बनी है उन पर भी ज्यादा बार पुरुष ही सांसद बने है । अंबाला लोक सभा से 1952 व 1957 में सुभद्रा जोशी सांसद बनी थी, उसके बाद 2004 व 2009 में कुमारी सैलजा को यहां से सांसद बनने का मौका मिला ।

इसके अलावा सभी चुनावों में पुरुष ही सांसद बने । इसी प्रकार भिवानी-महेंद्रगढ लोक सभा से 1977 में चंद्रावती, 1999 में सुधा यादव व 2009 में श्रुति चौधरी सांसद बनी। करनाल से 1957 में सुभद्रा जोशी, कुरुक्षेत्र से 1998 व 1999 में कैलाशो देवी तथा सिरसा से 1991 व 1996 में कुमारी सैलजा व 2019 में सुनीता दुग्गल सांसद बनी ।


इस बार सिरसा से कुमारी सैलजा कांग्रेस पार्टी की तरफ से, अंबाला से बंतो कटारिया भाजपा की तरफ से एवं हिसार से नैना चौटाला जजपा व सुनैना चौटाला इनेलो से मैदान में उतरी है। अब देखना यह है कि इस बार कितनी महिलाएं संसद की चौखट तक पहुंचने में कामयाब हो पाती है।

आने वाले समय में नारी वंंदन विधेयक के तहत राजनीति में आने वाली महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित होंगी । स्वाभाविक है कि ऐसे में सांसद बनने वाली महिलाओं की संख्या निर्धारित अनुपात 33 प्रतिशत होगी और सत्ता में बनती भागीदारी में महिलाएं अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकेंगी ।

विधेयक के बाद राजनीतिक क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाली महिलाओं का मनोबल बढ़ा है। वहीं राजनीति में सक्रिय पुरुष नेताओं ने भी अपने परिवारों की महिलाओं को इस क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए है ताकि आने वाले दिनों में महिला आरक्षण के चलते अगर उनकी टिकट कटती है तो ऐसे में वे अपने परिवार की महिला के लिए टिकट की मांग अपनी-अपनी पार्टियों से कर सकें ।

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