गांव के जर्रे-जर्रे में आती है सियासत की खुशबू, इस बार लोकसभा में इस गांव के फिर से चार प्रत्याशियों मैदान में ठोकी ताल
चौटाला गांव का नाम देश भर में ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में अपना परिचय करवा चुका है। या यूं कहें कि गांव चौटाला सियासत की यूनिवर्सिटी है तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। गांव चौधरी देवीलाल का है। खास पहचान तो होगी।
राजस्थान सीमा से सटा हरियाणा की अंतिम छोर पर बसे चौटाला गांव की गली गली में चौधराहट की झलक मिलती है। आजादी से पूर्व ही चौटाला गांव ने चौधराहट की तरफ अपने कदम बढा दिए थे। चंडीगढ से लेकर दिल्ली तख्त तक इस गांव को चौधर करने के कई अवसर मिले है।
गांव चौटाला से और चौ. देवीलाल परिवार से इस बार भी चार प्रत्याशी लोकसभा चुनावों में उतरे हुए है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि एक बार फिर गांव चौटाला की मिट्टी से संबंधित एक सदस्य तो संसद के चौखट तक पहुंचेगा।
चौटाला गांव की सियासी कहानी
हैरान करती है चौटाला गांव की सियासी कहानी। सियासत की नर्सरी के रूप में भी इस गांव को पहचाना जाता है । यह शायद देश का इकलौता ऐसा गांव होगा जहां से 15 राजनेता 35 बार विधायक ने। देश को इस गांव ने उपप्रधानमंत्री दिया। दो मुख्यमंत्री हरियाणा को दिए। बेशुमार मंत्री और सांसद यहां के राजनेता बने।
चौधरी देवीलाल इसी गांव से ताल्लुक रखते थे। वे दो बार उप प्रधानमंत्री तो दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। उनके बड़े बेटे ओमप्रकाश ने तो अपने नाम के पीछे अपने गांव का नाम चौटाला लगाना शुरू किया तो यह गांव राजनीतिक लिहाज से और अधिक सुर्खियों में आ गया।
खास बात यह है कि 1938 के बाद से प्रत्येक विधानसभा में इस गांव ने प्रतिनिधित्व किया। चौटाला गांव वोटों की लिहाज से सिरसा जिला का सबसे बड़ा गांव है। यहां की आबादी 25 हजार से अधिक है। वोटों और आबादी के लिहाज से सिरसा के इस सबसे बड़े गांव में कभी 52 हजार एकड़ जमीन का रकबा था और इसे बावनी के नाम से जाना जाता था। एक अन्य कहानी इसके नाम के साथ जुड़ी है। यहां पर चार डालों वाले पेड़ थे, जिसकी वजह से इस गांव का नाम चौटाला पड़ा।
पर इस गांव को प्रसिद्धी मिली इसकी सियासी कहानी की वजह से। दरअसल 1938 में सिरसा सीट पर उपचुनाव हुआ था। उस समय चौधरी देवीलाल पूरे सक्रिय थे। पर कम उम्र होने के चलते वे चुनाव नहीं लड़ सके। जिसके चलते उनके भाई साहिबराम ने चुनाव लड़ा और वे चुनाव जीतकर विधायक बने और गांव चौटाला से विधानसभा की चौखट तक की कहानी यहीं से शुरू हो जाती है।
इसके बाद 1946 में फिर से साहिबराम विधायक चुने गए। इसके बाद 1951 में हुए चुनाव में देवीलाल सिरसा से विधायक चुने गए तो 1959 में सिरसा से उपचुनाव जीता और साल 1962 में फतेहाबाद से विधायक बने। 1974 में उन्होंने रोड़ी से उपचुनाव जीता। 1977 में देवीलाल भट्टू से, 1982, 1985 और 1987 में महम से विधायक निर्वाचित हुए।
अगर हम गहनता में जाए तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। साहिबराम 2 बार, चौधरी देवीलाल 8 बार, ओमप्रकाश चौटाला 5 बार, चौधरी मनीराम 4 बार, अजय सिंह चौटाला 3 बार, अभय सिंह चौटाला 4 बार, चौधरी रणजीत सिंह, नैना चौटाला व डॉ. सीताराम 2-2 बार, दुष्यंत चौटाला, अमित सिहाग, बृजलाल गोदारा और जयनारायण वर्मा 1-1 बार विधायक चुने गए। राज्य गठन के बाद 1967 में राज्य में पहला चुनाव हुआ। साहब राम व देवीलाल के बाद देवीलाल के पुत्र प्रताप चौटाला 1967 में हुए प्रदेश के पहले विस चुनाव में ऐलनाबाद से विधायक बने।
ओमप्रकाश चौटाला ने साल 1970 अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। वे ऐलनाबाद से उप चुनाव जीतकर विधायक बने। चौटाला 1970 में ऐलनाबाद, 1990 में दड़बा कलां से, 1993 में नरवाना, 2000 में नरवाना और 2009 में उचाना से विधायक बने। इसी गांव के बृजलाल गोदारा 1972 में ऐलनाबाद से विधायक बनें। 1977 में बरवाला हलके से जयनारायण वर्मा विधायक चुने गए गए। एक और कद्दावर नेता थे स्व. मनीराम इसी गांव में पैदा हुए। वे 1977, 1987, 1996 व 97 में विधायक बने।
चौ. रणजीत सिंह 1987 में रोड़ी से तो 2019 में रानियां से विधायक बने। गांव चौटाला के ही मनीराम के पुत्र डॉ. सीताराम साल 2000 और 2005 में डबवाली से विधायक बनें। इसी प्रकार से अजय सिंह चौटाला 1988 में राजस्थान के दाताराम गढ़, 1993 में नोहर से और 2009 में डबवाली से विधायक चुने गए। अभय सिंह चौटाला साल 2000 में रोड़ी से तो साल 2010, 2014 और 2019 में ऐलनाबाद से विधायक निर्वाचित हुए। नैना चौटाला 2014 में डबवाली से और 2019 में बाढड़ा से विधायक…