महेंद्र घणघस
सिरसा, 15 जुलाई। भले ही विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद बड़ी पार्टियां सरकारें बनाती आ रही हैं पर निर्दलीयों की भूमिका कई बार अहम हुई हैं।
खास कर ऐसी स्थिति में जब कोई पार्टी बहूमत के नजदीक तो होती है पर उसके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायक नहीं होते तो फिर निर्दलीयों की जय-जयकार होना स्वाभाविक है।
ऐसा कई बार हुआ है जिसमें सिरसा की भूमिका भी रही।
हरियाणा गठन के बाद सबसे पहले 1982 में ऐसी स्थिति आई जब सरकार बनाने के लिए निर्दलीयों की जरूरत थी। उस चुनाव में सिरसा से लक्षमण दास अरोड़ा से निर्दलीय चुनाव जीता ।
वे सरकार में शामिल हुए और मंत्री बने। इसी प्रकार वर्ष 2009 में सिरसा से गोपाल कांडा ने चुनाव जीता और वे हुड्डा सरकार में मंत्री बने।
वर्ष 2019 के चुनावों में रानियां से चौ. रणजीत सिंह ने भी आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता और वे बीजेपी की सरकार में मंत्री बने।
निर्दलीय विधायक तभी मंत्री बने जब बड़ी पार्टी के पास बहुमत नहीं था। ऐसे में कहा जा सकता है कि जब किसी पार्टी को बहुमत के लिए कुछ विधायकों की जरूरत होती है तो निर्दलीय चुनाव लड़ कर विधायक बनने वाले के लिए सभी दरवाजे खुले होते हैं वह बड़ी पार्टी का समर्थन करके मंत्रीमंत्रल में शामिल हो जाते है।
ऐसे उदाहरण 1982, 1996, 2009 व 2019 में देखने को मिले हैं।
प्रदेश में अब तक 130 निर्दलीय विधायक बने हैं
हरियाणा में अब तक 130 निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव जीत कर विधानसभा तक पहुंचने में सफलता हासिल की है। प्रदेश में वर्ष 1967 में 16, 1972 में 11, 1977 में 7, 1982 में 16,
1987 में 7, 1991 में 5, 1996 में 10, 2000 में 11, 2005 में 10, 2009 में 7, 2014 में 5 व 2019 में 7 निर्दलीय विधायक बने हैं।
2019 में सिरसा से निर्दलीय गोकुल पहुंच गया था जीत के नजदीक सिरसा विधानसभा से 2019 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार गोकुल सेतिया जीत के बहुत ही करीब पहुंच गए थे ।
हलोपा के गोपाल कांडा ने 604 वोटों से चुनाव जीता। इस बार भी गोकुल सेतिया
निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि अभी तक वे किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं। लछमण दास आरोड़ा के नाती होने के कारण उन्हें एक बड़ा वोट बैंक विरासत में मिला है। गत
चुनाव में इनेलो ने भी गोकुल का समर्थन किया था। इस बार भी ऐसा हो सकता है अगर गोकुल ने कोई पार्टी ज्वाइन नहीं की तो।
सभी हलकों में निर्दलीय आएंगे मैदान में
बात अगर कांग्रेस व बीजेपी की करें तो प्रत्येक हलके में पांच से सात नेता टिकट की लाइन में हैं।
ऐेसे पार्टियां एक-एक को ही टिकट दे पाएंगी। स्थिति ऐसी बन सकती है कि कई नेता पार्टी द्वारा टिकट न मिलने पर चुनावी मैदान में उतरेंगे।
क्योंकि वे पहले से ही चुनाव लडऩे की पूरी तैयारी में जुटे हुए हैं। ऐसे में उनको टिकट न मिलने पर वे अब तक की गई अपनी मेहनत का जाया नहीं करना चाहेंगे।
ऐसे नेता सिरसा जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर लगभग सभी पार्टियों में मौजूूद हैं। ऐसे में कहा
जा सकता है कि पार्टियों द्वारा प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद बिस्फोट होंगे और स्वाभाविक है कि
चुनावी समीकरणों में बदलाव होगा, क्योंकि ऐसे भले ही चुनाव जीतने की स्थिति में न हों पर अपनी
ही पार्टी के प्रत्याशी को हराने की स्थिति में जरूर होते हैं।