-कुशल संगठनकत्र्ता, प्रखर वक्ता, समाजसेवी एवं दमदार राजनेता के रूप में छोड़ी अनूठी छाप
हरियाणा की सियासत के बरगद चौ. ओमप्रकाश चौटाला का निधन हो गया है। वे 90 वर्ष के थे। गुरुग्राम स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली।
पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने साढ़े पांच दशक तक सक्रिय सियासत में एक लौह पुरुष नेता के रूप में अपनी छाप छोड़ी। संघर्ष के सफर को जारी रखा।
एक कुशल संगठनकत्र्ता, प्रखर वक्ता, समाजसेवी एवं दमदार राजनेता के रूप में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। आज बेशक चौटाला साहब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी लाजवाब कहानी हमें हमेशा ही प्रेरणा देती रहेगी।
दरअसल चौ. ओमप्रकाश चौटाला के बिना सियासत की कहानी अधूरी है। वे सबसे अधिक पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। 7 बार विधायक बने। पांच अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से विधायक चुने गए।
राज्यसभा के सदस्य रहे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। 12 अप्रैल 1998 को उन्होंने अपने पिता चौ. देवीलाल के मार्गदर्शन में इनैलो रूप पौधा लगाया जो आज वटवृक्ष का रूप ले चुका है।
चौ. ओमप्रकाश चौटाला का जन्म 1 जनवरी 1935 को गांव चौटाला में हुआ। पिता चौ. देवीलाल की पाठशाला में रहकर उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा। चौटाला व संगरिया में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद खेतीबाड़ी करने लगे। हरियाणा गठन के बाद चौ. ओमप्रकाश चौटाला 1970 में पहली बार उपचुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित हुए।
लौहपुरुष के रूप में बनाई पहचान
खास बात यह है कि चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने एक लोहपुरुष राजनेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। कभी भी विपरीत परिस्थितियों में डावांडोल नहीं हुए। संघर्ष के सफर को जारी रखते हुए हमेशा ही कार्यकत्र्ताओं का हौसला बढ़ाते थे।
खास बात यह है कि चौटाला साहब की हाजिरजवाबी एवं यादशात का कोई सानी नहीं था। वे भीड़ में से अनजान से कार्यकत्र्ता का नाम भी पुकार लेते थे। प्रशासन पर उनकी गजब की पकड़ थी।
उन्होंने हमेशा ही राजनीति को जनसेवा का जरिया माना और कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी एक लोहपुरुष राजनेता के रूप में उभरकर सामने आए। कार्यकत्र्ताओं के चेहरे पर बेशक कभी शिकन आ जाए, लेकिन चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने हमेशा ही दमदार हौसला बरकरार रखा।
जनता दरबार बना था मिसाल
24 जुलाई 1999 को चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इससे पहले चौटाला टूकड़ों में तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके थे। एक बार 6 दिन के लिए, एक बार 16 दिन के लिए और एक बार।
ऐसे में अब चौटाला मुख्यमंत्री के रूप में लम्बी पारी खेलने की रणनीति पर काम कर रहे थे। किस्मत और समीकरण भी उनके पक्ष में जा रहे थे। अक्तूबर 1999 में संसदीय चुनाव हुए। कारगिल युद्ध के बाद हुए इस संसदीय चुनाव का असर पूरे देश सहित हरियाणा में नजर आया।
इनैलो-भाजपा ने मिलकर संसदीय चुनाव लड़ा और क्लीन स्विप करते हुए सभी दस सीटों पर जीत दर्ज की। 5 सीटों पर इनैलो को और 5 पर भाजपा को जीत मिली। इस जीत से चौटाला बहुत उत्साहित थे।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2001 में होने थे। पर चौटाला ने संसदीय चुनाव में मिले अपार समर्थन के चलते विधानसभा चुनाव समय से पहले करवाने का फैसला किया। फरवरी 2000 में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हुए।
भाजपा और इनैलो ने मिलकर चुनाव लड़ा। इनैलो ने 29.61 प्रतिशत मतों के साथ 47 सीटों पर जबकि भाजपा ने 8.94 प्रतिशत वोटों के साथ 6 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस को 31.22 मत प्रतिशत के साथ 21 सीटों पर जीत मिली।
बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी केा इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। हविपा को 2 सीटों पर जीत मिली और उसे केवल 5.55 प्रतिशत मत ही मिले। 16.90 प्रतिशत वोटों के साथ 11 आजाद विधायक निर्वाचित हुए।
चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने सरकार बनने के बाद सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरूआत की। वे गांव-गांव जाते थे। संबंधित विभागों के अधिकारी मौके पर मौजूद होते थे। लोगों की समस्याएं सुनते थे।
अधिकारियों को निर्देश देते थे। समस्या का मौके पर ही समाधान हो जाता था। सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के बाद तो अफसर कोई भी गलती करने की गुंजाइश नहीं रखते थे। यह कार्यक्रम पूरे देश में एक मिसाल बना।
पिता चौ. देवीलाल ने सौंपी थी राजनीति विरासत
दिसम्बर 1989 में चौधरी देवीलाल केंद्र की सियासत में चले गए और वे उपप्रधानमंत्री बन गए। उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया। महम विधानसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया।
चौ. देवीलाल ने अपने बड़े बेटे चौ. ओमप्रकाश चौटाला को अपना सियासी उत्तराधिकारी बनाया। 2 दिसम्बर 1989 को ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बन गए। दूसरी बार चौटाला ने 12 जुलाई 1990 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
इसके बाद चौटाला तीसरी बार 22 मार्च 1991 को मुख्यमंत्री बने। चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने जीवन की सबसे लम्बी पारी 24 जुलाई 1999 से लेकर फरवरी 2005 तक खेली।
इस दौरान चौटाला ने सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरूआत की। इस कार्यक्रम के अंतर्गत चौटाला गांव में किसी सार्वजनिक स्थान पर पहुंचते। तमाम विभागों के आला अधिकारियों के बीच ग्रामीणों संग संवाद करते और उनकी समस्याएं जानते।