chautala ka artical
सिरसा, 21 दिसंबर। हरियाणा वो पवित्र भूमि है जहां पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया, यह वहीं भूमि है जिसे दूध-दही का खाना के रूप में पहचाना जाता है, यह वहीं भूमि है जिसके खिलाडियों ने देश की झोली को सदा पदकों से भरा है।
यही वहीं भूमि है जिसे देश की राजनीति को एक नई दिशा दी, यह वही हरियाणा है जिसे चौ.देवीलाल की कर्मभूमि के नाम से भी जाना जाता है,
हरियाणा का गांव चौटाला जिसे राजनीति की नर्सरी कहा जाता है इसी गांव ने देश को डिप्टी पीएम, दो सीएम, अनेक सांसद, अनेक विधायक दिए है, इस गांव को पहचान दी चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने जो प्रदेश के पंाच बार मुख्यमंत्री और सात बार विधायक और एक बार राज्य सभा के सदस्य रहे।
चौ. ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा की राजनीति का चाणक्य कहा जाता रहा है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में ऐसे कदम उठाए जिन्हें सदियों तक याद किया जाता रहेगा।
पहला चुनाव हार गए थे चौटाला, उपचुनाव में जीते
चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने अपने पिता चौ.देवीलाल से राजनीति के गुर सीखे, राजनीति की पाठशाला उनके स्वयं के घर में ही थी। पढा़ई के मामले में वे पीछे रहे और अंतिम दौर में दसवीं और बारहवीं की।
राजनीति के हर गुर से वे अच्छी तरह वाकिफ थे और उन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाने लगा। राजनीति में जो असंभव माना गया उसे उन्होंने संभव करके दिखाया।
ओम प्रकाश चौटाला की चुनावी राजनीति की शुरुआत 1968 में शुरू हुई। उन्होंने पहला चुनाव देवीलाल की परंपरागत सीट ऐलनाबाद से लड़ा। उनके मुकाबले पूर्व सीएम राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी से लालचंद खोड़ ने चुनाव लड़ा।
इस चुनाव में चौटाला हार गए। हालांकि हार के बाद भी चौटाला शांत नहीं बैठे। उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाया और हाईकोर्ट पहुंच गए। एक साल चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने लालचंद की सदस्यता रद्द कर दी। 1970 में उपचुनाव हुए तो चौटाला ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने।
दूसरी बार 05 दिन में ही मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा
कुछ दिन बाद चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए। बनारसी दास को 51 दिन बाद ही पद से हटाकर चौटाला दूसरी बार ष्टरू बन गए। मगर, महम में हुई हिंसा का मामला ठंडा नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी चाहते थे कि चौटाला पर जब तक केस चल रहा है वे ष्टरू न बनें। मजबूरन 05 दिन बाद ही चौटाला को फिर से पद छोडऩा पड़ा। अब की बार उन्होंने मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को सीएम बनाया।
रणजीत सिंह से झटक ली थी सीएम कुर्सी, यही से परिवार में पैदा हुई राजनीतिक दरार
साल 1989 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए और राजीव गांधी की सरकार चुनाव हार गई। चौधरी देवीलाल केंद्र में उपप्रधानमंत्री बनाए गए। उस वक्त देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। देवीलाल के केंद्र में आने के बाद सवाल उठा कि अब सीएम कौन बनेगा?
दौड में उनके छोटे बेटे चौधरी रणजीत चौटाला सबसे आगे थे। वे उस वक्त हरियाणा विधानसभा के सदस्य भी थे। ओम प्रकाश राज्यसभा के सांसद होने की वजह से रेस में सबसे पीछे चल रहे थे,
लेकिन देवीलाल ने दिल्ली में ओम प्रकाश के नाम की घोषणा कर दी। देवीलाल की पहल पर राज्यपाल ने ओम प्रकाश को शपथ भी दिला दी। इस घटना के बाद ही देवीलाल परिवार में सियासी दरार आ गई।
सीएम बनने और कार्यकाल में पिता का रिकॉर्ड तोड़ा
ओपी चौटाला ने पिता चौधरी देवीलाल की विरासत पर राजनीति शुरू की, लेकिन मुख्यमंत्री रहने के मामले में उन्होंने अपने पिता का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया। ओम प्रकाश चौटाला 5 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे,
जबकि देवीलाल सिर्फ 2 बार ही इस कुर्सी तक पहुंच पाए थे। देवीलाल चार साल तक ही मुख्यमंत्री रह पाए, जबकि चौटाला के पास करीब 6 साल तक हरियाणा की बागडोर रही।
चौटाला हरियाणा विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर भी रहे। 2024 के चुनाव में चौटाला ने ही विपक्षी मोर्चा बनाने की पहल की थी। उनके ही जींद में हुए कार्यक्रम में विपक्ष के कई बड़े नेता आए थे।
चौ.देवीलाल के कहने पर नहीं लड़ा था चुनाव
वर्ष 1991 के मई-जून महीने में प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। चौ. देवीलाल ने घिराय से, चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने दड़बा और रणजीत सिंह चौटाला ने रोड़ी से पर्चा भरा।
हालांकि, बाद में देवीलाल ने तय किया कि परिवार से केवल एक व्यक्ति चुनाव लड़ेगा। पिता की बात मानते हुए ओम प्रकाश चौटाला सीएम होते हुए भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़े।
कहा तो यह भी जा रहा था कि चौ.देवीलाल दोनों से ही नाराज थे और इसी के चलते उन्होंनें चुनाव नहीं लडऩे दिया। दोनों बेटों ने पिता के कहने पर चुनाव नहीं लड़ा। महम में हिंसा के कारण देवीलाल चौतरफा घिरे थे।
वह महम का रास्ता काटकर दिल्ली जाया करते थे। देवीलाल ने घिराय हलके से फार्म भरा और साथ ही सांसद के चुनाव के लिए रोहतक से भी आवेदन कर दिया, मगर दोनों ही चुनाव देवीलाल हार गए। हरियाणा में कांग्रेस की सरकार आ गई।
इसी बीच राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री बना दिया गया। नरसिम्हा राव ने हरियाणा में भजनलाल को मुख्यमंत्री बना दिया।
वर्ष 1993 में कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल ने शमशेर सिंह सुरजेवाला को राज्यसभा में भेज दिया। इससे नरवाना विधानसभा की सीट खाली हो गई। उपचुनाव में शमशेर सिंह ने अपने बेटे रणदीप सुरजेवाला को नरवाना से उतारा।
इस सीट से ओम प्रकाश चौटाला ने भी चुनाव लड़ा। ओम प्रकाश चौटाला को जीत मिली। इस प्रकार चौटाला फिर से हरियाणा विधानसभा में लौटे। पिता के कहने पर चुनाव न लडऩे के बाद चौटाला ने उपचुनाव लडक़र जीत हासिल की।
महम कांड, जिसके चलते दो बार सीएम की कुर्सी छोडऩी पड़ी
चौटाला पहली बार 2 दिसंबर 1989 को हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। तब वे राज्यसभा सांसद थे। सीएम बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल ने उन्हें अपनी पारंपरिक सीट महम से चुनाव लड़वाया, लेकिन खाप पंचायत ने इसका विरोध शुरू कर दिया।
36 बिरादरी की खाप ने फैसला किया कि देवीलाल के भरोसेमंद और हर चुनाव में उनके प्रभारी रहे आनंद सिंह दांगी को चुनाव मैदान में उतारा जाए, पर देवीलाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। ??खाप ने आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय मैदान में उतार दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई, जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की भेंट चढ़ गई।
चूंकि राज्य का मुख्यमंत्री चुनाव लड़ रहा था, इसलिए देश-विदेश की मीडिया इस पर नजर रख रही थी। चुनाव में धांधली का मामला मीडिया की सुर्खियां बन गया। चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने के आदेश दिए।
जब दोबारा वोटिंग हुई, तो फिर से हिंसा भडक़ उठी। चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया। लंबे सियासी घटनाक्रम के बाद 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय की गईं, लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई।
चौटाला ने दांगी के वोट काटने के लिए अमीर सिंह को डमी कैंडिडेट बनाया था। अमीर सिंह और दांगी एक ही गांव मदीना के थे। हत्या का आरोप भी दांगी पर लगा। जब पुलिस दांगी को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंची, तो उनके समर्थक भडक़ गए। पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चली दीं। इसमें 10 लोगों की मौत हो गई।
महम कांड का शोर संसद में भी गूंजने लगा। प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गठबंधन के दबाव में देवीलाल को झुकना पड़ा। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के साढ़े 5 महीने बाद ही ओम प्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा।
उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया गया। कुछ दिन बाद चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए। बनारसी दास को 51 दिन बाद ही पद से हटाकर चौटाला दूसरी बार सीएम की कुर्सी पर जा बैठे, लेकिन महम कांड का शोर अभी कम नहीं हुआ था।
प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी चाहते थे कि चौटाला पर जब तक केस चल रहा है वे सीएम न बनें। मजबूरन 5 दिन बाद ही चौटाला को फिर से पद छोडऩा पड़ा। अब की बार उन्होंने मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को सीएम बनाया।
दुष्यंत को सीएम बनाने के नारे लगे तो चौटाला ने मंच से ही दोनों भाई पार्टी से निकाले
जनवरी 2013 को दिल्ली की एक अदालत ने 14 साल पुराने टीचर भर्ती घोटाले में ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला को 10-10 साल की सजा सुनाई। दोनों के जेल जाने के बाद देवीलाल की विरासत संभालने का दारोमदार उनके पोते और ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला के कंधों पर आ गया।
इधर, अजय चौटाला ने विदेश में पढ़ रहे अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को वापस बुला लिया। दोनों के हरियाणा लौटते ही अभय चौटाला से उनकी तनातनी शुरू हो गई। पार्टी दो खेमों में बंट गई। एक खेमा खुलेआम दुष्यंत चौटाला को दूसरा देवीलाल का दर्जा देने लगा।
अजय चौटाला की ओर से बनाए गए इनेलो के स्टूडेंट विंग इनसो ने मुख्यमंत्री के लिए दुष्यंत का नाम उछालना शुरू कर दिया। इसी दौरान ओपी चौटाला पैरोल पर बाहर आए।
7 अक्टूबर 2018 को हरियाणा के गोहाना में इनेलो की सद्भावना रैली थी। मंच पर ओमप्रकाश चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय चौटाला मौजूद थे। थोड़ी देर बाद ट्रैक्टर मार्च करते हुए दुष्यंत चौटाला, अपने भाई दिग्विजय के साथ सभा में पहुंचे।
दुष्यंत चौटाला के भाषण के वक्त उनके समर्थक शांत रहे, लेकिन जैसे ही अभय चौटाला बोलने के लिए खड़े हुए तो कार्यकर्ताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया। नारा उछला- ‘हमारा सीएम कैसा हो, दुष्यंत चौटाला जैसा हो।’इस रैली में हंगामा करने पर ओमप्रकाश चौटाला ने दुष्यंत और दिग्विजय को इनेलो पार्टी से निकाल दिया था।
इसके बाद जब ओमप्रकाश चौटाला भाषण देने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने सख्त लहजे में कहा- ‘अगर नारे ही लगाने हैं तो मैं वापस चला जाता हूं। मुझे अपनी याददाश्त पर पूरा भरोसा है। मैंने देख लिया कि कौन क्या कर रहा है।
नारे लगाने से काम चलता तो मैं अकेला काफी था। माहौल खराब करने वाले या तो सुधर जाएं, वर्ना चुनाव से पहले निकालकर बाहर फेंक दूंगा।’ इसके बाद दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को इनेलो ने कारण बताओ नोटिस भेजा और कुछ ही दिन बाद ओम प्रकाश चौटाला ने दोनों को पार्टी से निकाल दिया।
9 दिसंबर 2018 को दुष्यंत और दिग्विजय ने मिलकर जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी की नींव रखी। दोनों ने अपने पिता अजय चौटाला को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया।
2005 के बाद से कभी सत्ता में नहीं पहुंची इनेलो
तीन साल बाद यानी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में चौटाला की पार्टी महज 9 सीटों पर सिमट गई। चौटाला 2 सीटों से चुनाव लड़े थे। एक सीट से हार गए। उनके 10 मंत्री भी अपनी सीट नहीं बचा पाए।
तब से इनेलो कभी सत्ता में नहीं पहुंची। 2018 में पार्टी टूट गई और 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गई। 2024 में इनेलो को सिर्फ 2 ही सीटों पर जीत मिली। ओपी चौटाला के बेटे अभय चौटाला भी चुनाव हार गए। हालांकि उनके पोते अर्जुन चौटाला और भतीजे आदित्य देवीलाल चुनाव जीत गए।
प्रदेश के हर गांव का कई कई बार किया था दौरा, लोगों को नाम से जानते थे
वर्ष 1999 में सीएम बने ओमप्रकाश चौटाला ने वर्ष 2000 के चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल की फिर से सीएम को कार्यभार संभाला। उन्होंने सरकार आपके द्वार कार्यक्रम शुरू किया जिसके तहत गांवों में जाकर खुला दरबार लगाया और कुछ ऐसे काम थे जो उन्होंने अपनी मर्जी से करवाए।
गांव की फिरनियों, तालाबों को पक्का करवाया, हरिजन चौपाल बनवाई, पार्क बनवाए, श्मशाम घाटों की चारदीवारी करवाई। सबसे बड़ी बात ये थी कि उन्होंने प्रदेश के हर गांव को एक दूसरे से सडक़ों से जोड़ा।
वे जिस भी गांव में जाते वहां के कुछ लोगों को वे नाम ही बुलाते थे। वे एक बार जिससे भी मिल लेते थे उसका नाम कभी नहीं भूलते थे। उनकी इ बात के उनके विरोधी तक कायल थे।
चौटाला के कार्यकाल में रात को भी जागते रहते थे अधिकारी
चौ. ओमप्रकाश चौटाला के पास जो भी शिकायत पहुंचती थी उसे वे मार्क कर संबधित अधिकारी के पास भेज देते थे और ठीक तीन दिन बाद स्वयं फोन की उस शिकायत पर की गई कार्यवाही के बारे में जानकारी लेते थे, अगर किसी ने लापरवाही बरती तो उसे सजा भी देते थे।
हालात ये हो गए थे कि अधिकारी रात को अपने सिरहाने डायरी लेकर सोते थे पता नहीं कब चौटाला साहब का फोप आ जाए और जानकारी मांगने लगे। उनके पास जो भी अधिकारी जाता था वह पूरा होमवर्क करके जाता था।
अगर ओमप्रकाश चौटाला विदेश से रात को दो बजे भी लौटते थे तो सुबह दस बजे कार्यालय पहुंच जाते थे, अपना कोई भी कार्यक्रम उन्होंने स्थगित नहीं किया। वे समय के पाबंद थे, अगर किसी कार्यक्रम के लिए उन्होंने दस बजे का समय दिया है तो वे 9.55 पर पहुंच जाते थे।