नहीं चले लोग अन्याय के पक्ष में, भारत बंद रहा बेअस आह्वान करने वाले नहीं निकले एसी से बाहर

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भारत बंद का सच, जो आपको जानना जरूरी है

दोस्तो न्याय किस को पसंद नहीं होता, हर व्यक्ति चाहता है कि उसे न्याय मिले। न्याय पाने के लिए ही हमारे देश में संविधान के अनुरूप लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें न्यायपालिका स्थापित की गई है।

परंतु न्याय पाने के लिए आवश्यक है कि आप एक दयालु हृदय भी रखें और कानून में विश्वास भी। यदि दोनों में से एक खूबी भी आपके पास नहीं है, तो आप ना सच्चे व दयालु इंसान हैं और न ही आप देश के अच्छे नागरिक।

ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि जो दयालुता नहीं रखेगा वह किसी न किसी का हक मारेगा और जो कानून में विश्वास नहीं रखेगा, वह अराजकता फैलाने का पक्षधर होगा, जो देश के लिए घातक साबित होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2024 को आरक्षण की एक रिट पटीशन पर जो फैसला सुनाया, उससे अनेक अनुसूचित जातियों को आरक्षण का लाभ मिलने के उनके हक पर मुहर लगा दी गई थी।

अब उन अनुसूचित जातियों को भी आरक्षण के आधार पर तरक्की का, रोजगार का, शिक्षा का हक मिल पाएगा जो संविधान के लागू होने के बाद से आरक्षित श्रेणी में होने के बावजूद एक जाति विशेष की हेकड़ी अथवा मनोपली के कारण उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित रखे हुए था।

अगर एक बाप के चार बेटे हैं तो उसकी संपत्ति पर भी चारों का बराबर का हक होता है। इसी प्रकार आरक्षण के दायरे में जितनी जातियां आती हैं, उन्हें आरक्षण का बराबर का लाभ मिलना चाहिए था।

परंतु जाटव, चमार, रविदासी या फिर इसी जाति के अन्य नामों वाली जातियां आरक्षण का अधिकांश लाभ ले रही थी और इन जातियों के अतिरिक्त अन्य अनुसूचित जातियों जिनमें वाल्मीकि, मजहबी, धानक, बाजीगर, ओड, साहसी, बावरिया, बंगाली, डूम, ढेया, सिकलीगर, कूचबंद, पासी, कबीरपंथी, जुलाहे, आदि करीब 46 जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित रह गई थीं।

इन वंचित जातियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आरक्षण मिलना लगभग तय हो गया है, जिसका विरोध चमार, जाटव, रविदासी, रेगर, रविदासी सिख, आदि कर रहे थे।

इन जातियों के बड़े नेता ही तो आईएएस, आईपीएस, एक्सीएन, प्रोफेसर, इंजीनियर, सांसद, एमएलए, राज्यसभा सांसद, पार्टी के राज्य अध्यक्ष आदि बड़ी बड़ी पोस्टों पर विराजमान हो गए थे आरक्षण की बदौलत।

परंतु इनके अलावा जो अन्य जातियां अनुसूचित जाति में शामिल हैं, वे आरक्षण के लाभ के बावजूद इन बडे पदों पर नहीं पहुंच पाई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो जातियां आरक्षण का लाभ लेकर तरक्की कर गई हैं अथवा बड़े बड़े पदों पर विराजमान हैं तो अब उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

अब वे क्रिमीलेयर में आनी चाहिए ताकि अन्य जातियों को आरक्षण का लाभ मिल पाए और वे भी मुख्य धारा में शामिल हो सकें।

ऐसे में सांसदों, विधायकों, बड़े बड़े पदों पर बैठे इन जातियों के लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलने का डर सता रहा है। यही लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध भारत बंद से करवा रहे हैं।

भारत बंद का आह्वान
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से अनुसूचित जाति की जो जातियां आरक्षण का लाभ उठा कर तरक्की की राह पर थीं, या यूं कहें कि जिनके सांसद, विधायक अथवा राज्यसभा सांसद बन चुके थे, वे इकट़ठा हुए और उन्होंने पहले तो प्रधानमंत्री से मिल कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की,

परंतु प्रधान मंत्री ने जब उनकी इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया तो इन अनुसूचित नेताओं ने प्रधानमंत्री से क्रिमीलेयर लागू नहीं करने की मांग कर डाली जिसे उन्होंने मान भी लिया। परंतु कोटे में कोटे को रद्द करने से प्रधानमंत्री ने साफ मना कर दिया।

बावजूद इसके इन सांसदों ने अपनी कुछ जेबी संस्थाओं के अगुओं की मार्फत भारत बंद का आह्वान कर डाला और 21 अगस्त की तारीख रख दी। कुछ नेताओं ने इसे सफल बनाने के लिए खुलकर वीडियो जारी भी किए,

परंतु वे भूल गए कि केवल एक जाति विशेष की बदौलत वे अपने राजनीतिक सत्ता में आने के रास्ते नहीं खोल सकते। भारत बंद का देश भर मे ना के बराबर असर हुआ। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली में भारत बंद का असर शून्य दिखाई दिया जबकि बिहार, राजस्थान के एक आध हिस्से में मिलाजुला असर दिखाई दिया।

जहां बंद समर्थक अनुसूचित जातियों ने उग्र होने की कौशिश की तो वहां उन्हें लठ भी खाने पड़े। कुछ को तो लहु लुहान होते टीवी स्क्रीन पर भी दिखाया गया है। ऐसे में वे जो एसी कमरों में बैठे हुए आम जनता को सड़कों पर हुडदंग के लिए भेज रहे हैं, वे स्वयं अथवा उनकी औलादों को उन्होंने पुलिसिया लठ खाने को क्यों नहीं भेजा।

क्या आप अन्याय के पक्षधर हैं, क्या आप अपनी राजनीतिक जमीन खिसकते देख बच्चों व मासूमों की जान लेना चाहते हैं, कौन जवाब देगा।

हालांकि वंचित अनुसूचित जातियों के ही कुछ समझदार लोगों ने सड़कों पर आकर लोगों से दुकानें खुली रखने का आह्वान किया और बाजार खुलवाए, ताकि आम जनमानस जो अनुसूचित जाति का नहीं है, उसे अपने व्यापार में अथवा दिन चर्या में किसी प्रकार का कोई नुकसान ना हो।

वोटों की राजनीति
भारतीय जनता पार्टी पिछले दस वर्षों से हरियाणा व केंद्र में सत्ता में काबिज है। उसे इस बात का साफ पता चल चुका है कि चमार, रेगर, रविदासी, रमदासिया, जाटव आदि का अधिकांश वोट बैंक केवल और केवल बहुजन पार्टी से जुड़ा हुआ है।

ये अन्य दलों की ओर कभी वोट नहीं करते या बहुत कम करते हैं। ऐसे में इनके अलावा जो जातियां अनुसूचित जाति में शामिल हैं, उनको अगर आरक्षण का लाभ सुनिश्चित हो जाए तो वे भाजपा को वोट कर सकती हैं।

इसीलिए सबसे पहले भाजपा की सत्ता वाले प्रदेशों में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे लागू करने की घोषणा की गई। परंतु हरियाणा ही नहीं इसे लागू करने में जो प्रोसेस सुप्रीम कोर्ट ने डेटा की बात की है, उसे सही मायने में इकट्‌ठा करना और उसके विश्लेषण के बाद उसे लागू करने में कम से कम छह महीने लगने वाजिब हैं।

ऐसे में भाजपा हरियाणा के अन्य वंचित अनुसूचित जाति के वोट बैंक को कैसे पाए, इसी लिए उसने शॉर्टकट तरीके से इन लोगों को अपनी ओर करने की ठानी और अनुसूचित जाति कमीशन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया, जबकि कानून के जानकारों का मानना है कि अनुसूचित जाति आयोग के बस की बात नहीं है।


वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने पहले ही अपनी यात्रा के दौरान ही ये घोषणा कर दी थी कि वे सत्ता में आते ही जातिगत जनगणना करवाएंगे ताकि वंचित अनुसूचित जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके।

इसी बीच भाजपा ने तुरंत प्रभाव से इस ओर ध्यान देना शुरू कर दिया और राहुल अथवा कांग्रेस को इसका फायदा ना मिले, कार्य करना शुरू कर दिया। परंतु पहली अगस्त को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया,

राहुल ने हरियाणा के चुनाव घोषित होते ही कह डाला कि वे अपने संगठन और टिकट आबंटन में इस बात का ध्यान रखेंगे कि हर जाति को सही भागीदारी मिले। ऐसे में वंचित अनुसूचित जातियों को आरक्षण का लाभ सबसे पहले कांग्रेस ने देने की घोषणा कर लागू कर दिया।

जबकि अभी भाजपा इस बारे में कोई घोषणा नहीं कर पाई है। कांग्रेस की इस घोषणा के बाद जब वंचित जातियों के लोगों को एमएलए अथवा विधायक पद के लिए चुनाव लड़ने की पार्टी टिकट कांग्रेस दे देगी तो निश्चित रूप से ये इन जातियों का रुझान कांग्रेस की ओर होगा।

आरक्षण का आधार
देश में संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर जब संविधान बना रहे थे, उस समय देश में कुछ जातियों पर करीब पांच हजार वर्षों से अत्याचार हो रहा था, और उन्हें हीन भावना से देखा जाता था।

यहां तक कि कुछ जातियों को तो हवा के रुख की ओर खड़ा नहीं होने दिया जाता था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि जो हवा उन्हें छूकर अन्य जातियों के लोगों को छू जाएगी तो वे अशुद्ध हो जाएंगे।

कुछ जातियों के कमर में झाडू बांध दी जाती थी ताकि उनके पांव के निशान जमीन पर अपने आप मिटते चले जाएं अन्यथा ऐसा माना जाता था कि उनके पांवों के निशान जमीन को अशुद्ध कर देंगे। कुछ जातियों के गले में हांडी लटका दी जाती थी ताकि वे अगर थूकें तो जमीन पर थूक ना गिरे वरना जमीन पर उनके थूक गिरने से जमीन अपवित्र हो जाने का खतरा है।

अर्थात हवा, धरती व वायुमंडल भी कुछ जातियों के लिए घृणा का आधार मान लिया जाता था। आदमी आदमी में भेदभाव था। ऐसे में अंबेडकर के सामने ऐसी अछूत जातियों को अन्य स्वर्ण जातियों के बराबर का दर्जा दिलवाने के लिए उन्हें प्राथमिकता के आधार पर कुछ मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से आरक्षण की व्यवस्था संवैधानिक अधिकार के रूप में दी गई

ताकि वे जातियां भी अन्य जातियों के बराबर जीने का अधिकार पा सकें और समानता का व्यवहार उनसे भी किया जाए। इसके लिए उन्होंने आरक्षण की व्यवस्था को लागू किया।

संविधान में केवल 10 वर्षों के लिए था आरक्षण

संविधान निमार्ण के दौरान ड्राफ्टिंग कमेटी के कुछ सदस्यों ने अंबेडकर की इस आरक्षण व्यवस्था का विरोध भी किया था परंतु अंबेडकर की विद्वता और अकाटय तर्कों के आगे राजेंद्र प्रसाद जैसे प्रख्यात राजनेताओं व अन्य सदस्यों को भी झुकना पड़ा और उन्हें ऐसी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था को मानना पड़ा।

परंतु अंबेडकर ने ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों की भावना को भांप कर आरक्षण को संविधान में लागू रखने की समय सीमा केवल दस वर्ष ही रखी।

इसके पीछे उनका मंतव्य यह रहा कि अगर सही तरीके से इस आरक्षण व्यवस्था को लागू किया गया तो निश्चित रूप से ये अछूत जातियां समाज में बराबरी का दर्जा हासिल करने में कामयाब हो जाएंगी।

परंतु सत्तासीन नेताओं ने इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और आज तक आरक्षण की व्यवस्था को पूर्ण व सही तरीके से लागू ही नहीं होने दिया। यही कारण है कि आज तक भी देश में आरक्षण का झुनझुना बज रहा है।

ऐसे में हमें अपनी आंख खोलकर ये अवश्य देखना चाहिए कि भारत बंद का आह्वान किस आधार पर किया गया है, यदि वह आम जनता अथवा किसी अच्छे मकसद से किया गया है तो उसे कामयाब किया जाना चाहिए।

परंतु यदि किसी जाति विशेष के लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए कर रहे हैं तो हमें इस पर कतई विश्वास नहीं करना चाहिए। हम अगर देशहित में सोचने की क्षमता रखते हैं तो संविधान में हमें विश्वास रखना होगा और निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर कार्य करना होगा।

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