सिरसा। धर्म के नाम पर चाहे कोई डेरा हो या फिर कुछ और। लोगों की आस्था होती है। धीरे-धीरेआस्था का व्यापार होने लगता है। अगर नहीं तो करोड़ों और अरबों की संपत्ति डेरों के पास कहां से आ जाती है।
कहीं न कहीं डेरों का पर्दे के पिछे ही सही व्यापार तो होता है। यह आस्था का व्यापार होता है इस लिए तेजी से बढ़ता है। कुछ लोगों के गले से ये बात उतरेगी नहीं। शायद इस लिए हमें कोसेंगे भी।
पर हकीकत तो यही है। खैर जो भी है हमें क्या। अब बात आती है जो दूसरों का मार्ग दर्शन करने वाले अपने पर आने पर खुद क्यों भटक जाते हैं की। प्राचीन काल से लेकर अब तक देखें तो युद्ध और विवादों की जड़ सत्ता व संपत्ति ही रही है।
तो फिर डेरों की संपत्ति का विवाद भी इससे वंचित नहीं है। न जाने कितने डेरे विवादों में आए। अलग-अलग कारण हो सकते हैं पर संपत्ति भी एक कारण है।
हाल ही में एक डेरे की गद्दी को लेकर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। कुछ लोगों ने गद्दी को लेकर अपनी आपत्ति जताई तो कुछ अपने आपको हकदार कहते दिखे। इसमें किस का क्या हक है या नहीं है यह तो प्रबंधन ही जाने पर लोगों के बीच यह विवाद चर्चा विषय जरूर बना।
अब मामला कुछ शांत नजर आ रहा है। शायद किसी स्तर पर किसी प्रकार का समझौता हुआ होगा। नहीं भी हुआ होगा तो एक तरफ बढ़ते जन को देखते हुए भी दूसरा पक्ष शांत होने की सोच सकता है।
आगे क्या होगा यह तो विवादों का अंत न होने तक मालूम नहीं। अगर बागडोर संभालने के बाद प्रबंधन ने ठीक से मैनेज कर लिया तो ठीक ही रहेगा। लोगों की आस्था का भी ध्यान रखा जाता है।
हमें इस बार ज्यादा जानकारी नहीं है पर जो लोगों में चर्चा हुई उसी को बयां कर रहे हैं। उक्त सभी बातें चर्चा बनी। अगर किसी डेरे के पास अपार संपत्ति न हो तो शायद कहीं ऐसा विवाद देखने को न मिले।
पर चाहे व धर्म की बात हो या फिर राजनीति की लड़ाई तो संपत्ति और विरासत की होती रही है। लालच पहले भी था और आज भी देखने में आता है। सवाल यह उठता है कि जहां पर लोग अपनी अस्था रखते हैं वहां से वे सद् मार्ग तलाशते है।
पर अगर धार्मिक संगठनों को चलाने वाले खुद ही पथ भ्रमित हो जाएं तो आस्था का क्या होगा। व्यापारी तो होता है चाहे क्षेत्र कोई भी हो। इससे आस्था का वर्ग भी वंचित नहीं रहा।
एक साधारण आदमी पूरी उम्र अपने घर को चलाने के लिए मेहनत करता है और जब वह मरता है तो उसका घर वहीं का वहीं होता है जहां से उसने शुरू किया था।
पर कुछ ऐसी धार्मिक व राजनीतिक संस्थाएं है जो शुरू में तो कुछ नहीं होती पर कुछ ही सालों में करोड़ों व अरबों तक पहुंच जाती है। उनकी शाखाएं भी अन्य राज्यों व देशों में खुल जाती है। आखिरकार उनको हथियाने के लिए जंग होती है।