जाट नाराज हुआ तो भाजपा को विधानसभा चुनाव में होगा नुकसान
सिरसा, 11 जुलाई। हरियाणा की राजनीति की धुरी जाट और गैर जाट पर घूम रही है, जिस राजनीतिक दल ने दोनों में सामजस्य बैठाया उसी के सिर पर ताज सजा है, जब कही किसी दल ने एक को तवज्जों दी तो दूसरा नाराज हो गया।
भाजपा ने प्रदेश में जाट और गैर जाट की राजनीति को हवा दी। पर काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। लोकसभा चुनाव में हाथ से पांच सीटें फिसलने पर भाजपा अब सोशल इंजीनियरिंग में जुट गई है,
भाजपा की निगाह 75 प्रतिशत गैर जाट बिरादरी पर टिकी हुई है, पर जाटों की अनदेखी उसे भारी पड़ सकती है। ज्यादातर जाट खेती से जुड़ा हुआ है यानि किसान है, किसान आंदोलन में उनकी अहम भूमिका रही है।
महिला खिलाडियों के यौन उत्पीडन और अग्निवीर योजना को लेकर जाट वर्ग नाराज है। ऐसे में इस वर्ग की उपेक्षा भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है।
गैर जाटों को खुश करने को लेकर ही मोहनलाल बडौली को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति कितनी कारगर होगी यह तो विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चलेगा।
वैसे संविधान बदलने की बयार दलितों को भाजपा से दूर लेती जा रही है।
पिछले एक माह से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कतार में जाट समाज से राज्यसभा सदस्य सुभाष बराला, दलित वर्ग से राज्यसभा सदस्य कृष्णलाल पंवार, पंजाबी वर्ग से मनीष ग्रोवर, ब्राहमण वर्ग से रामविलास शर्मा आदि के नाम चर्चा में थे, मोहनलाल बडौली के बारे में किसी ने भी सोचा नहीं था।
भाजपा ने सदैव चौंकाने वाले नाम की ही घोषणा की है। मध्य प्रदेश और राजस्थान की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ऐसे लोगों को बैठाया जिनके बारे में कभी किसी ने सोचा भी न था।
ब्राहमण वर्ग से मोहल लाल बडौली को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर सभी को चौंका दिया वहीं बडौली जो भी लोकसभा चुनाव में हार गए थे। उनकी नियुक्ति से साफ हो गया है कि भाजपा जाट और गैर जाट की बिसात पर विधानसभा चुनाव को लेकर मोहरे बिछा रही है। शह-मात के खेल में भाजपा को कितनी कामयाबी मिलती है यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा।
दरअसल भाजपा मोहन लाल बडौली के माध्यम से जीटी रोड बैल्ट को मजबूत करना चाहती है क्योंकि जीटी बैल्ट के सात जिलों की 31 विधानसभा सीटे आती है जिनमें से 15 सीटें ही भाजपा के पास है जबकि वर्ष 2014 में भाजपा के पास 21 सीटें थी।
अगर प्रदेश की आबादी की बात करें तो वह 2.54 करोड़ है, जिसमें 22 प्रतिशत जाट, दलित 21 प्रतिशत, ब्राहमण 08 प्रतिशत, वैश्य 05 प्रतिशत, पंजाबी 08 प्रतिशत, राजपूत 3.5 प्रतिशत और मुस्लिम 3.5 प्रतिशत हैैं।
हरियाणा में 22 जिलें हैं और 22 जिले 07 क्षेत्र बांगर, बागड, खादर, देशवाली (जाटलैंड), अहीरवाल, मेवात, और दक्षिण हरियाणा में बंटे हुए हंै।
महेंद्रगढ़, नारनौल, रेवाडी जिले अहीरवाल क्षेत्र में, करनाल,कुरूक्षेत्र, अंबाला, यमुनानगर और पंचकूला खादर क्षेत्र में, हिसार, भिवानी, चरखी दादरी, सिरसा, फतेहाबाद बागड क्षेत्र में, कैथल, जींद, बांगर क्षेत्र में, रोहतक, सोनीपत, झज्जर, पानीपत देशवाली क्षेत्र में, नूंह और फिरोजपुर झिरका मेवाती क्षेत्र में आते हैं।
हरियाणा 1966 में पंजाब से अलग राज्य बना। इस प्रदेश में करीब 33 साल तक जाट मुख्यमंत्रियों ने राज किया, गैर जाट में पंडित भगवतदयाल शर्मा, राव वीरेंद्र सिंह, चौ. भजनलाल, मनोहरलाल ने राज किया और अब सीएम पद पर नायब सिंह सैनी विराजमान है।
भाजपा ने 2014 के चुनाव में जाट और गैर जाट की राजनीति शुरू की, उसे इस चुनाव में गैर जाट वर्ग का 48 प्रतिशत वोट मिला। वर्ष 2019 में यह वोट प्रतिशत बढकर 74 प्रतिशत हो गया।
लोकसभा चुनाव में गैर जाट वोट उसके हाथों से छिटक गया। कांगे्रस ने दलितों के मन में एक बात बैठा दी कि अगर भाजपा तीसरी बार सत्ता में आई तो वह भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के द्वारा बनाए गए संविधान को बदलकर रख देगी।
भाजपा इसका तोड़ नहीं कर पाई और दलित वोट उसके हाथ से छिटककर कांगे्रस और अन्य राजनीतिक दलों के पास चला गया, उधर पिछड़ा वर्ग अपने हकों को लेकर भाजपा में दबा हुआ मानकर झटपटा रहा था। इस वर्ग का कुछ हिस्सा भाजपा से नाराज होकर कांगे्रस की ओर चला गया।
भाजपा को प्रदेश की राजनीति में मजबूत कदम रखने के लिए जाटों पर भी ध्यान देना होगा, जाटों की उपेक्षा को लेकर अगर जाट भाजपा से नाराज हुआ तो उसे आने वाले विधानसभा चुनाव में भारी कीमत चुकानी होगी,
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में ट्रेलर देख लिया है। किसान आंदोलन, महिला खिलाडियों का यौन उत्पीडऩ और अग्रिवीर योजना को लेकर जाट आज भी भाजपा से नाराज है, भाजपा ने इस नाराजगी को दूर करने के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया।
अगर भाजपा सबका साथ और सबका विकास की बात करती है तो उसे सारी बिरादरियों को साथ लेकर चलना होगा। भाजपा के ही तत्कालीन सांसद रहे राजकुमार सैनी ने जाटों और गैर जाटों के बीच खाई को और चौडा किया था।
वे 35 प्लस एक बिरादरी को लेकर बात करते थे, यानि
प्रदेश की 36 बिरादरी में से 35 एक ओर और जाट एक ओर।
जाट आरक्षण के दौरान भी जाट और गैर जाटों के बीच खाई और चौडी हो गई थी। भाजपा अगर 75 प्रतिशत के बलबूते राज करने की सोच रही है तो वह शेष 25 प्रतिशत की अनदेखी भी नहीं कर सकती।
लोकसभा चुनाव के नतीजे साफ बता रहे है कि पहले से कांगे्रस अधिक मजबूत होती जा रही है। दूसरी प्रदेश में अफसरशाही के हावे होने पर जनता भाजपा से दूर होती जा रही है।
इस बार भाजपा को एक ही अनेक मोर्चे पर जंग लडऩी होगी। भाजपा का कद प्रदेश में नियुक्त होने वाले जिलाध्यक्षों पर भी निर्भर होगा क्योंकि लोकसभा चुनाव में कई भाजपा जिलाध्यक्षों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे थे।