घोषणा में देरी से कांग्रेसी निराश
फ्रंटफुट पर खेल रही है भाजपा
10 सितंबर 2024
उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से कांग्रेस कार्यकर्ता निराश है और नेता भी मायूस है। रणनीति के तहत भाजपा फ्रंटफुट पर खेल रही है। कांग्रेस उसके जाल में फंसती नजर आ रही है।
अंदर की बात है इनेलो और बसपा का गठजोड़ दिल्ली के प्रयास से ही हुआ है। बसपा और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) वोट तो कांग्रेस के ही काटेगी।
अभय चौटाला के राजनीतिक विरोधियों को भाजपा एक-एक कर अपने से दूर करती नजर आ रही है। वैसे भी चौटाला और भाजपा धुर विरोधी तो है नहीं।
चुनाव की अचानक और पहले घोषणा होने के पीछे भी दिल्ली का इशारा है। कांग्रेस टिकट के चाहवान नेता प्रदेश के गांव गांव घूमकर प्रचार तो पार्टी का ही कर रहे थे। घोषणा होते ही ब्रेक लग गया और प्रचार छोड टिकट के जुगाड़ में लग गए हैं।
मतदान से पहले प्रचार के लिए इस बार ज्यादा समय दिया गया है। देरी से कांग्रेसी आपस में उलझे रहेंगे और भाजपा को ठीक-ठाक करने का मौका मिल जायेगा।
सबसे पहले एक साथ 67 उम्मीदवारों की घोषणा रणनीति का ही हिस्सा है। भाजपा में भगदड़ से कांग्रेस तो खुश है, मगर भाजपा नेतृत्व को पहले ही सब कुछ पता था।
रिपोर्ट थी कि बहुत से नेता पार्टी छोड़ने वाले हैं। गुप्तचर विभाग के आला अधिकारी नफा नुकसान का आंकलन बिठा चुके थे इसलिए नेतृत्व ने पार्टी छोडने वाले अधिकतर नेताओं को मनाने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि फिलहाल सब कुछ योजना अनुसार चल रहा है। गोवा चुनाव में भाजपा यह रणनीति अजमा चुकी है। भाजपा के चाणक्य की रणनीति हरियाणा में कितनी कारगार होगी यह तो समय ही बतायेगा।
भाजपा में भगदड़ को देख कांग्रेस में भी आशंका बनी और पार्टी बैकफुट पर आ गई। नामांकन भरने के मात्र दो दिन शेष रह गए हैं और आधे से ज्यादा उम्मीदवारों की घोषणा अभी बाकी है।
कांग्रेस के निर्णय लेने में देरी से निराश होकर आम आदमी पार्टी ने भी एक के बाद एक दो सूची जारी कर दी हैं, हालांकि इसे दबाव की रणनीति माना जा रहा है।
दोनो पार्टियों में अंदर खाते समझौते के प्रयास अभी भी चल रहे हैं, जोकि अंतिम क्षण (नामांकन वापसी)तक जारी रहेगें। भाजपा कभी भी नहीं चाहेगी कि कांग्रेस और आप का समझौता सिरे चढ़े।
कांग्रेस की अपनी रणनीति है। सैलजा की हुडा से खुलेआम नाराजगी दिखाना और मुख्यमंत्री पद की दोड़ में दिखना रणनीति का ही हिस्सा है।
हाईकमान की इच्छा के बिना खुले आम ऐसी बातें संभव ही नहीं। दलित और अन्य गैर जाट मतदाता पर पकड़ बनाए रखने के लिए कांग्रेस की यह रणनीति है। केवल हुडा का ही मुख्यमंत्री पद की दौड़ में दिखने से गैर जाट मतदाता कांग्रेस से खिसक सकता है।
साफ बात है कि भविष्य का किसको पता है। दिल्ली और चंडीगढ़ बैठे राजनीति के पंडित चुनाव परिणाम तक अपने-अपने कयास लगाते ही रहेगें।