शहर की ग्रीन बेल्टों की हुई दुर्दशा, रखरखाव के नाम पर होने वाले खर्च में गड़बड़ की संभावना
सिरसा, 12 जून। सिरसा शहर में ग्रीन बेल्टों की दुर्दशा हो चुकी है। ग्रीन बेल्टों के रखरखाव पर लाखों रुपए सालाना खर्च होते है।
शायद यह प्रक्रिया कागजों तक ही सिमित है। क्योंकि अगर ग्रीन बेल्टों में जाकर देखा जाए तो नहीं लगता है यहां पर रखरखाव के लिए कोई राशि खर्च की गई है। जगह-जगह से लोहे वाली ग्रीलें टूटी पड़ी है।
ग्रीन बेल्ट में पौधे दम तोड़ गए। पानी न देने के चलते घास भी सूख गई। सफाई का तो बुरा हाल है। यह स्थिति सिरसा की सभी ग्रीन बेल्टों की बनी हुई है।
बात अगर डबवाली रोड़ से सिविल होस्पीटल-बहुतकनीकी संस्थान वाली ग्रीन बेल्ट की करें तो इसकी स्थिति सबसे दयनीय बनी हुई है।
जगह-जगह से लोहे के ग्रिलें टूटी हुई है। दीवारें भी गिर चुकी है। पौधे नष्ट हो चुके है। बिन पानी के घास की जगह सूखा मैदान बन गया है। नाम ग्रीन बेल्ट पर देखने में कूड़े का सम्राज्य लग रही है।
हद तो उस वक्त हो गई जब इस ग्रीन बेल्ट को कूड़े के डंप के तौर पर प्रयोग किया जाने लगा। अब यहां पर पेड़ पौधे व घास नहीं कूड़े के बड़े-बड़े ढेर नजर आने लगे है।
आसपास के लोगों का कहना है कि अगर ग्रीन बेल्ट का रखरखाव सही नहीं हो रहा था तो कम से कम इसे कूड़े का सम्राज्य तो नहीं बनाना चाहिए था।
लोगों ने बताया कि इस ग्रीन बेल्ट पर वर्षों से लाखों रुपए सालान रखरखाव के लिए कागजों में खर्च हो रहे हैं पर यहां पर कभी कोई काम नहीं हुआ।
न तो पौधे कामयाब हुए और न ही देखभाल की कमी के चलते यहां पर घास से ग्रीन बेल्ट ग्रीन हो पाई।
लोगों ने तो यह भी कहा कि इसका नाम ग्रीन बेल्ट की बजाय कूड़ा बेल्ट रख देना चाहिए ताकि कम से कम उस गबन पर तो विराम लग सके जो कागजों में यहां पर खर्च हो रहा है।
बताया जा रहा है कि ग्रीन बेल्ट के रखरखाव का ठेका लेने वाले ठेकेदार वर्षों तक संबंधित अधिकारियों की मिलीभुगत से सिर्फ कागजों में ही काम दिखा कर लाखों रुपए सालाना हजम करते रहे है।
लोगों ने सरकार से मांग भी की है कि इसकी जांच होनी चाहिए कि जब से ग्रीन बेल्ट बनी है तब से इसके रखरखाव पर कितना खर्च किया गया है।
शहर के लोगों ने मांग की कि यहां से कूड़ा डंप उठाया जाए और ग्रीन बेल्ट को ग्रीन बनाया जाए।
बताया जा रहा है कि ग्रीन बेल्ट में कूडे के ढेर लगने से आसपास के क्षेत्र में बीमारियां फैलने का भय भी बना हुआ है। अब आगामी मानसून के सीजन में यह स्थिति और ज्यादा गंभीर हो जाएगी।