सिरसा। हरियाणा विधानसभा चुनावों में सभी हलकों में प्रचार यौवन अवस्था में पहुंच चुका है। पर सिरसा विधानसभा में अब तक हलोपो के गोपाल कांडा ग्रामीण हलकों में पिछड़ते दिख रहे हैं।
सिरसा विधानसभा में 31 गांव हैं जिनमें से अधिकतर गांवों में 2019 का चुनाव जीतने के बाद अब तक गोपाल कांडा धन्यवादी दौरा करने तक नहीं गए। इसके अलावा चुनाव जीतने के बाद गोपाल कांडा ने बीजेपी का समर्थन किया था।
किसान आंदोलन के बाद किसान वर्ग या किसानी से संबंधित वर्ग बीजेपी से काफी नाराज हो गया और यह नाराजगी अब तक बरकरार है। ऐसे में गांवों में गोपाल कांडा की स्थिति बेहतर नजर नहीं आ रही।
अब भी बीजेपी द्वारा गोपाल कांडा को समर्थन देने के लिए सिरसा से अपना उम्मीदवार मैदान से बाहर कर लिया। तो इसका सीधा संदेश मतदाताओं में गया कि अब भी गोपाल कांडा भीरतखाते बीजेपी के साथ ही हैं।
गांवों में लोगों की नाराजगी की भरपाई करने के लिए गोपाल कांडा ने इनेलो से हाथ तो मिला लिया पर इसका उन्हें उतना लाभ नहीं मिलता दिख रहा जितना उनको उम्मीद थी।
इसके अलावा उन्हें लगता है कि बसपा से उन्हें दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का अवसर मिलेगा तो इसका भी कोई ज्यादा असर नहीं दिखा रहा क्योंकि अगर हम 2019 में बसपा के वोटों की बात करें तो बसपा को सिरसा विधानसभा से महज 787 वोट ही मिले थे। अब बात रही बीजेपी की तो कैंडिडेट मैदान से हटाने पर बीजेपी के कई नेता व कार्यकर्ता भी अपनी ही पार्टी से नाराज दिख रहे हैं।
वे क्या गुल खिलाएंगे अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि गांवों के मतदाताओं की गोपाल के प्रति नाराजगी व बीजेपी के साथ होने की नाराजगी गोपाल कांडा को नुकसान कर सकती है।
अब इन दोनों प्रकार की नाराजगी का कांग्रेस के उम्मीदवार गोकुल सेतिया को मिलता दिख रहा है। ऐसा नहीं है कि गोकुल का चुनाव एकतरफा है।
अब भी कहा जा सकता है कि सिरसा से गोपाल व गोकुल के बीच कड़ी टक्कर है। पर कांग्रेस की लहर व किसानों का जो साथ गोकुल को मिल रहा है उसके चलते वह बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं।