गोकुल सेतिया ने कांग्रेस ज्वाइन तो कर ली पर अब टिकट की राह हुई कठिन

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8 सितंबर, सिरसा। सिरसा से पांच बार विधायक रहे, पूर्व मंत्री स्वर्गीय लक्ष्मण दास अरोड़ा की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए राजनीति में आए गोकुल सेतिया अब ऐसे चक्रव्यूह में फंस गए है कि बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।

या यूं कहें कि सांप के मुंह में छिबकली वाली कहावत कि न निगल सकता और न ही उगल सकता वाली स्थिति गोकुल सेतिया के साथ बन गई है।

दरअसल वर्षों तक कांग्रेस में एक छत्र राज करने वाले परिवार में पले बढ़े गोकुल सेतिया इस बार आजाद कैंडिडेट के तौर पर सब पर भारी पड़ते नजर आ रहे थे।

वर्ष 2019 के चुनावों में हलोपा के गोपाल कांडा से वे महज 604 वोटों से पराजित हुए थे। पंजाबी बिरादरी के अलावा इनेलो ने उनका जोरदार साथ दिया।

उस से भी मजबूत स्थिति इस बार भी उनकी नजर आ रही थी। उन्होंने आजाद कैंडिडेट के तौर पर प्रचार भी शुरू कर दिया था।

पर विधानसभा चुनावों के नजदीक आ कर गोकुल सेतिया ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। बस विरोध का सिलसिला यहीं से शुरू हो गया।

इनेलो के वोट तो गोकुल के हाथ से खिसकेंगे ही साथ में अब कांग्रेस में विरोधियों की लंबी लाइन ने उनकी टिकट पर भी संकट खड़ा कर दिया है।

ऐसी स्थिति में अगर उनको टिकट नहीं मिलती तो दिल्ली से लौटते-लौटते उनकी तैयार की गई राजनीतिक जमीन भी खुस्क हो जाएगी। इनेलो भी तब तक अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है।

ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही है कि उनकी स्थिति पहले से कमजोर हो सकती है। और अगर टिकट मिल भी जाती है तो कांग्रेस में लंबे समय से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे नेताओं का विरोध होगा।

इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस के चाह्वान नेता अगर गोकुल को चुनाव जीता देते हैं तो हमेशा के लिए उनके सिरसा विधानसभा से चुनाव लड़ने की उम्मीदें खत्म हो सकती है।

ये बात सभी नेता भली भांति जानते हैं। वहीं दूसरी और सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा भी अपने खेमे में नेता को टिकट दिलाने के लिए कोशिश करेंगी।

ऐसे में कहा जा सकता है कि एक बार फिर गोकुल सेतिया ने चुनावी समर में परिपक्वता दिखाने में चूक कर दी।

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