सिरसा। हरियाणा के विधानसभा चुनावों से कुछ दिन पहले से कांग्रेस का दामन थामने वाले गोकुल सेतिया ने अपने लिए मुश्किलें मोल ले ली है।
इससे पहले उनके प्रति लोगों की सहानुभूति उनके साथ थी और इनेलो का समर्थन भी। पर अब गोकुल ने जैसे ही कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की है पार्टी में हडक़ंप मच गया है।
मचे भी क्यों न कांग्रेस नेता बहुत पहले से चुनाव लडऩे के सपने अपने मन में संजोए हुए थे। बुरे वक्त में कांग्रेस के साथ खड़े रहे और लोकसभा चुनावों में जी जान लगा कर कांग्रेस का पलड़ा भारी करने वालों पर पैराशूट से आया कैंडिडेट थौंप दिया जाए
तो स्वाभाविक है किसी भी नेता को गवारा नहीं होगा। साथ ही वोटर का मन भी सहानुभूति की जगह पर विरोध में हो सकता है। गोकुल सेतिया के कांग्रेस में जाने से न केवल कांग्रेस के नेता बल्कि वोटर भी हैरत में है।
अगर पार्टी ऐसे मौके पर पुराने संघर्षरत नेताओं व कार्यकर्ताओं पर अपना फैसला थौप देती है तो सुखद परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती।
जिन लोगों ने गोकुल के लिए विधानसभा तक पहुंचाने के लिए जमीन तैयार की थी उनके भी पैरों तले से आज जमीन खिसक गई जब उन्हें पता चला कि गोकुल कांग्रेस ज्वाइन कर चुके है।
वैसे देखा जाए तो 2004 के बाद सिरसा विधानसभा से कांग्रेस का सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के पास 20 साल बाद ऐसा अवसर आया था
जब सिरसा से लीड की संभावनाएं मिली थी पर पार्टी ने वर्षों से काम कर रहे नेताओं को पिछली लाइन में रख कर नए चेहरे को मैदान में उतारने के जैसे ही संकेत दिए हैं तो उसके बाद वोटर व कार्यकर्ता भी हैरत में हैं।
अब ऐसी स्थिति में हलोपा के गोपाल कांडा के लिए राह आसान होती नजर आ रही है। गोपाल कांडा को अगर बीजेपी का समर्थन मिल जाता है तो कांग्रेस के नए नेता को पटखनी देना उनके लिए और भी आसान हो जाएगा।
बहरहाल कांग्रेस में विद्रोह की संभावनाएं पैदा हो गई है। अब देखना यह है कि कांग्रेस अपने हाथ में आई बाजी को भुना पाती है या फिर इस फैसले के चलते अपनी जीतने वाली सीट को किसी और पार्टी की प्लेट में सजा कर देती है।