तो अब किस को पड़ेगी एससी के वोट की चोट
सिरसा। पिछले कई दिनों से हरियाणा विधानसभा चुनावों में एससी वर्ग को अपनी तरफ झुकाने के प्रयासों के तहत सभी पार्टियों द्वारा तरह-तरह की बयानबाजी की जा रही है।
कोई मानता है कि एससी वर्ग का कांग्रेस की तरफ झुकाव ज्यादा है क्योंकि कांग्रेस में एएसी वर्ग से एक बड़ी नेता हैं। तो कोई बसपा व कोई आम समाज पार्टी की बात करता है कि एएसी वर्ग तो इनके साथ है।
पर जातिया गणित को समझने के बाद साफ हो जाता है कि एससी समाज में एक बड़ा वर्ग उक्त सभी नेताओं के साथ नहीं चल रहा। उसके कई कारण है।
हरियाणा प्रदेश में अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण का मामला किसी भी प्रत्याशी का खेल बिगाड़ने और बनाने का काम करने को आतुर है ।
सुप्रीम कोर्ट के एक अगस्त के फैसले के बाद जहां अनुसूचित जातियां 2 भागों में बट गई हैं, वहीं एक जाति को लेकर इनेलो और भाजपा में इस कदर भय का माहौल पैदा हो गया है कि वह किसी हद तक भी जा रही हैं ।
भाजपा ने तो इस मामले में अक्लमंदी दिखाते हुए जहां अपना एक प्रत्याशी तक का नामांकन वापस ले लिया है, वहीं जजपा ने इसके विपरीत कदम उठाते हुए चंद्रशेखर रावण का साथ लिया है ।
जजपा और इनेलो की राह पर ही इन्हीं के परिवार का सदस्य रानियां से आजाद प्रत्याशी के रूप में रणजीत सिंह चौटाला भी चल पडे । जबकि इन सभी को इस बात
की जानकारी तक नहीं कि वे अनुसूचित जातियों में आरक्षण के लाभ से वंचित समाज का वोट बैंक कितना है। राजनीति के विशेषज्ञों का मानना है कि अब तो सुप्रीम कोर्ट तक इस बात को साबित कर चुका है
कि अनुसूचित जातियों में भी दो फाड़ हो चुके हैं । एक वो जो अगडी अनुसूचित जाति है और दूसरी 48 जातियों का वह समूह जो आरक्षण के संवैधानिक लाभ तक से वंचित रहा ।
अब राजनीतिक दलों को ये नहीं पता कि वे जिस अनुसूचित जाति का वोट बैंक वे अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं उसकी एवेज में कितना बडा नुकसान करवा रहे हैं।
क्योंकि वे नहीं जानते कि जिस अगडे अनुसूचित जाति का वोट बैंक अपने पक्ष में कर रहे हैं उस जाति का वोट बैंक कुल अनुसूचित जाति का केवल 32 प्रतिशत है जबकि वंचित अनुसूचित जातियों का वोट बैंक 68 प्रतिशत है ।
ऐसे में इनेलो बसपा के साथ मिलकर चाहे 38 फीसदी वोट अनुसूचित जाति का लेने का प्रयास कर रही है, वह 68 फीसदी वंचित अनुसूचित जाति का वोट गंवा रहे हैं।
इसी राह पर जजपा के साथ साथ स्वयं रंजीत सिंह चौटाला भी 68 फीसदी अनुसूचित जाति का वोट बैंक गवा रहे हैं । भाजपा इस तथ्य को जानती थी कि सिरसा में अनुसूचित जाति कम हैं और वंचित अनुसूचित जातियों की संख्या अधिक है इसलिए उसने अपना प्रत्याशी तक वापस करवा लिया है ।
ऐसे में चंद्रशेखर रावण को प्रचार में बुलाना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने समान है।
चंद्रशेखर रावण की आम समाज पार्टी व बसपा दोनों एक ही अनुसूचित जाति की पार्टियां हैं। जबकि इस जाति का डीएससी जातियां प्रदेश में विरोध कर रही हैं ।
इसी डीएससी के विरोध में एक अनुसूचित समाज द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में बीते दिनों भारत बंद का आह्वान किया था परंतु डीएससी जातियों ने उस समाज के बंद को नाकाम कर दिया था और मात्र कुछ ही जगहों को छोडक़र वह भी हरियाणा के बाहर भारत भर में ही इक्का-दुक्का जगहों पर बंद रहा था ।