सिरसा। जलियांवाला बाग की घटना आजादी के आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस घटना के बाद भारतीय जनमानस में आजादी की एक प्रचंड सुनामी उठी, जिसके परिणाम स्वरूप भारत आजाद हुआ। जिसकी गंूज आज तक भारतीय समाज में सुनाई देती है।
उक्त बातें जलियांवाला बाग की 105वीं वर्षगांठ पर आयोजित भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा शाखा जिला सिरसा द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में डा. प्रवीण कुमार सहायक प्रो. इतिहास चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय ने कही। उन्होंने बताया कि हंटर कमेटी ने इस घटना की जांच के लिए हंटर कमेटी का गठन किया।
जिसने अपनी जांच में बताया कि खुफिया सूत्रों से सरकार को 12.40 मिनट पर खबर मिली और 4 बजे सेना एकत्रित हुई और 5 बजे वहां पहुंचकर जरनल ओ डायर के नेतृत्व में 250 सैनिकों ने बाग के सभी गेटों पर मोर्चा संभाल लिया। 5 बजे गोलीबारी आरंभ हुई और 10 मिनट में 1150 फायर किए। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 379 व्यक्ति मारे गए और 200 घायल हुए।
जलियांवाला बाग में लगी सूची के अनुसार 386 मरे और सैकड़ों घायल हुए। डीसी अमृतसर के रिकॉर्ड अनुसार 484 लोग मरे और 1000 घायल हुए। इसके बाद कांग्रेस ने भी एक तहकीकात समिति का गठन किया। उनकी रिपोर्ट के अनुसार 1000 लोग मरे और 4 से 5 हजार लोग घायल हुए।
इस घटना से प्रत्यक्षदर्शी स. उधमसिंह जो उस समय बालपन में थे और इस घटनाक्रम का बदला लेने की प्रतिज्ञा कर ली। घटना के ठीक 21 वर्ष बाद लंदन के केक्स्टन हॉल में 13 मार्च 1940 को आयोजित एक सभा में बैठे जनरल ओ डायर को शहीद उधम सिंह ने गोलियों से मौत के घाट उतार दिया।
इससे भारतीय युवाओं में आजादी के प्रति जो जज्बा था, वह उच्चतम स्तर का था। जिसमें अंग्रेजों के प्रति रोष का प्राकट्य हुआ, जोकि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल, बटुकेश्वर दत, चंद्रशेखर आजाद, दुर्गा भाभी के रूप में देखने को मिला, जिन्होंने आजादी के आंदोलन में अपना सर्वोच्च योगदान दिया