हरियाणा के निर्माता चौ. बंसीलाल की कहानी

हरियाणा | Khabrain Hindustan | चौ. बंसीलाल की कहानी |

चौधरी बंसीलाल को आधुनिक हरियाणा का निर्माता कहा जाता है। आज ही के दिन उनका 1927 में हुआ। बंसीलाल हरियाणा के गांव-गांव में बिजली पहुंचाई। नसबंदी को लेकर विवादों में आए।

शराबबंदी भी लागू करने वाले पहले मुख्यमंत्री रहे। बिजली, सडक़ और सिंचाई में अभूतपूर्व काम उन्होंने किए। बंसीलाल का जन्म गांव गोलागढ़ में एक किसान परिवार में हुआ।

उनके पिता लोहारु में आढ़त का कारोबार भी करते थे। 1946 में उन्होंने दसवीं की। 1950 में प्रभाकर और 1952 में ग्रेजुएशन किया। बाद में उन्होंने लॉ की डिग्री भी की। कुछ समय तकउन्होंने भिवानी कोर्ट में वकालत भी की।

1958 में वे राजनीति में आ गए। सबसे पहले पंजाब प्रदेश कांग्रेस के सदस्य बने। बंसीलाल की छवि एक सख्त प्रशासक की रही। उनके बारे में यह आम माना जाता है कि वे रात को 12 बजे के बाद भी अफसरों को फोन मिला देते थे।

महीने में 25 दिन हरियाणा के दौरे पर रहते थे। हरियाणा में टूरिज्म पैलेस बनाने, घंटाघरों को तुड़वाने जैसे किस्से उनसे जुड़े हैं।

बंसीलाल 1968 से लेकर 1975, 1972 से लेकर 1975, 1986 से लेकर 1987 और 1996 से लेकर 1999 तक चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे।

वे अपने जीवन में साल 1977 में चंद्रावती के सामने भिवानी संसदीय सीट से चुनाव हारे और 1987 में तोशाम विधानसभा क्षेत्र से उन्हें लोकदल के धर्मबीर ङ्क्षसह ने हराया।

राष्ट्रपति शासन लागू होने के करीब 6 माह बाद हरियाणा में मई 1968 में विधानसभा के चुनाव हुए। कांग्रेस को 81 में से 48 सीटों पर जीत मिली। राव बीरेंद्र ङ्क्षसह की विशाल हरियाणा पार्टी के 16 विधायक चुनकर आए।

दलबदल कर भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने वाले 28 विधायकों में से 19 1968 के विधानसभा चुनावों में हार गए।

कांग्रेस की ओर से भगवत दयाल शर्मा और चौधरी देवीलाल दोनों का चुनाव नहीं लड़वाया गया। दोनों ही चीफ मिनिस्टर के दावेदार थे और चाहवान भी।

भगवत दयाल शर्मा कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुख्यमंत्री के चयन के लिए पूर्व गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा को जिम्मेदारी सौंपी।

इसी बीच अपने समर्थित विधायकों के साथ भगवत दयाल शर्मा ने गुलजारी लाल नंदा के घर पर बैठक रख दी। कांग्रेस में कशमकश का दौर था।

इसी दौर में इंदिरा गांधी ने इंद्रकुमार गुजराल और दिनेश ङ्क्षसह को हरियाणा भेजा। दोनों ने मुख्यमंत्री पद के लिए चौधरी बंसीलाल का नाम सुझाया। बंसीलाल उस समय राज्यसभा के सदस्य थे।

निविर्वादित लीडर थे। लॉ गे्रजुएट थे। ऐसे में चौधरी बंसीलाल 41 साल की उम्र में 21 मई 1968 को मुख्यमंत्री बन गए। दिल्ली के एक सरकारी रेस्ट हाऊस में चौधरी बंसीलाल को एक सादे समारोह में राज्यपाल बीएन चक्रवर्ती ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई।

चौधरी बंसीलाल एक कुशल और सख्त प्रशासक थे। इसका परिचय उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ही दे दिया। बंसीलाल से पहले भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र ङ्क्षसह मुख्यमंत्री रह चुके थे।

शर्मा कांग्रेस में थे और राव बीरेंद्र ने 1967 का चुनाव स्वयं की हरियाणा विशाल पार्टी से लड़ा था। मुख्यमंत्री न बनने से मायूस हुए शर्मा ने कांग्रेस छोड़ दी थी।

शर्मा और राव दोनों ने हाथ मिला लिया। बंसीलाल की सरकार गिराने की तमाम कोशिशें की। राज्यपाल ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा।

बंसीलाल के कई विधायकों को तोडऩे के बाद शर्मा और राव की जोड़ी ने 41 विधायक भी राज्यपाल के समक्ष पेश कर दिए, पर बंसीलाल ने भी ऐसी चाल चली कि राव और शर्मा दोनों विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव ही ना ला सके। राव बीरेंद्र ङ्क्षसह भी

सरकार गिराने को लेकर जोड़-तोड़ में लगे थे। 17 सितम्बर 1968 को बंसीलाल ने कैबीनेट का गठन किया और छह मंत्री बनाए। चीफ मिनिस्टर न बन पाने से मायूस भगवत दयाल शर्मा ने 8 दिसम्बर 1968 को 15 विधायकों सहित कांग्रेस छोड़ दी।

वे राव बीरेंद्र के साथ मिल गए । इन सब के बीच ही रामधारी गौड़, महावीर सिंह, खुर्शिद अहमद और रण ङ्क्षसह ने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। बाद में हालांकि खुर्शिद अहमद वापस आ गए।

ऐसे में अब विधायकों की संख्या बल को लेकर बड़ी गेम चल रही थी। उस समय कुल 82 विधानसभा क्षेत्र थे। राव बीरेंद्र और भगवत दयाल शर्मा खेमे की ओर से एक बैठक हुई और भगवत दयाल शर्मा को संयुक्त विधायक दल का नेता चुना गया।

41 विधायकों के साथ भगवत दयाल शर्मा तत्कालीन राज्यपाल बीएल चक्रवर्ती के समक्ष पेश हुए। इसके ठीक तीन दिन बाद बंसीलाल राज्यपाल से मिले और 42 विधायकों के समर्थन का दावा किया।

उन्होंने छह निर्दलीय विधायकों के समर्थन वाला एक हस्ताक्षरयुक्त पत्र भी उन्हें दिखाया। ऐसे में अब धर्मसंकट में उलझे राज्यपाल ने राव बीरेंद्र ङ्क्षसह को विधानसभा के सेशन में अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा ताकि वे संवैधानिक तरीके से अपना दावा पेश कर सकें।

अब विधानसभा सेशन को चूंकि 6 सप्ताह का समय था। ऐसे में बंसीलाल जैसे राजनेता के लिए इतने समय में स्थितियां अपने पक्ष में करने का मौका था। ऐसा हुआ था। पूर्व मंत्री रण ङ्क्षसह सहित विधायक जगदीश चंद्र, ओमप्रकाश गर्ग, रूपलाल मेहता, नेकीराम, माडूराम फिर से कांग्रेस में लौट आए।

ऐसे में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की ओर से की गई जुगलबंदी और जोड़-तोड़ के बाद बंसीलाल मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही उनके जीवन में आए सियासी तूफान को थाम गए।

खास बात यह है कि यह सियासी तूफान ऐसे समय में आया जब विधानसभा का पहला सेशन भी होने वाला था। लेकिन उस समय 42 साल के चौधरी बंसीलाल ने राव बीरेंद्र और भगवत दयाल शर्मा की गुगली पर बोल्ड होने से बच गए।

बचे भी ऐसा कि उन्होंने शानदार सियासी शॉट खेला और राव बीरेंद्र को विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने के अरमानों पर भी पानी फेर दिया। बंसीलाल की सरकार इसके बाद स्थिर रही।

अपने पहले कार्यकाल में बंसीलाल ने प्रदेश के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की एक नींव रखी। उनके पहले ही कार्यकाल में चंडीगढ़ का मुद्दा भी उछला। 15 अगस्त 1969 को दर्शन ङ्क्षसह ने मरणवृत रखा और 74 दिन बाद उनकी मौत हो गई।

इसके बाद 26 जनवरी 1970 को संत फतेह ङ्क्षसह ने भी उपवास का ऐलान कर दिया। इंदिरा गांधी ने दोनों राज्यों के नेताओं को बुलाया। 29 जनवरी 1970 को चंडीगढ़ पंजाब को देने पर करार हुआ।

इसकी एवज में पंजाब के ङ्क्षहदी भाषीय क्षेत्र अबोहर, फाजिल्का तहसील और कुछ गांव हरियाणा को देने की बात हुई। कुल मिलाकर चौधरी बंसीलाल का पहला कार्यकाल एक तरह से प्रदेश के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने और अपने विरोधियों से लोहा लेने वाला रहा।

1972 का चुनाव: बंसीलाल की दूसरी पारी

बंसीलाल ने एक 1973 में प्रस्तावित हरियाणा विधानसभा चुनाव एक साल पहले ही 1972 में कराने का निर्णय लिया।

विधानसभा भंग करवा दी और जनवरी 1972 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए। इस बार कांग्रेस को 1968 की 48 सीटों की तुलना में 52 सीटों पर जीत मिली। राव बीरेंद्र ङ्क्षसह की विशाल हरियाणा पार्टी असर नहीं दिखा सकी।

चौधरी देवीलाल को सम्मान देने के मकसद से चौधरी बंसीलाल ने अपने पहले कार्यकाल में उन्हें खादी और ग्राम उद्योग बोर्ड का चेयरमैन बना दिया। चौधरी देवीलाल बंसीलाल से सीनियर थे। वे कई बार चुनाव जीत चुके थे।

पंजाब सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रह चुके थे। उम्र और अनुभव दोनों में बंसीलाल से बड़े थे। ऐसे में देवीलाल चौधरी बंसीलाल को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही काफी नाराज चल रहे थे।

दिसम्बर 1970 में चेयरमैन पद से देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया और जनवरी 1971 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। खैर 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 52 सीटों पर जीत दर्ज की और बंसीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए। इस बार उनका कार्यकाल 1975 तक रहा।

1975 में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी कैबीनेट में रक्षा मंत्री बना दिया। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया।

चौधरी बंसीलाल ने अपने मुख्यमंत्री के पहले और दूसरे कार्यकाल में बिजली और सडक़ में सबसे अधिक काम किए। हरियाणा के मुख्य सचिव रह चुके राम सहाय वर्मा अपनी किताब माई एनकाऊंटर्स विद थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं कि मार्च 1968 तक हरियाणा में 27,569 ट्यूबवैल थे।

1969 में इनकी संख्या 68226, 1970 में 86,455, 1972 में 1,010233 जबकि 1973 में 1,16,882 हो गई। प्रत्येक शहर में टूरिज्म कॉम्पलेक्स बनाने का आइडिया बंसीलाल की जेहन की उपज था।

कुरुक्षेत्र को तीर्थस्थल के रूप में भी उन्होंने विकसित किया। बंसीलाल के कार्यकाल में ही हरियाणा में भाखड़ा डैम जैसे बड़े प्रोजैक्ट का निर्माण कार्य पूरा हुआ।

7 हजार गांवों में बिजली पहुंचाई। अपने इलाके भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी में लिफ्ट पम्पों के जरिए नहरी पानी पहुंचाने का जटिल कार्य बंसीलाल ने ही किया।

नसबंदी और बंसीलाल
बंसीलाल लाल परम्परा के ऐसे किरदार रहे, जिन्होंने आधुनिक हरियाणा का निर्माण किया। बिजली, सडक़ और सिंचाई में अभूतपूर्व काम उन्होंने किए। इसके साथ ही आपात्तकाली में नसबंदी को लेकर वे विवादों में भी आए।

वे चार बार हरियाणाके मुख्यमंत्री रहे और दो बार केंद्र में मंत्री भी रहे। साल 1975 में आपात्तकाल लागू करने की नीति में उनका अहम योगदान रहा। वे संजय गांधी के काफी करीबी थी।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कैबीनेट में वे आपात्तकाल के समय मंत्री थे। आपात्तकाल और उस दौरान नसबंदी को लेकर चौधरी बंसीलाल विवादों में भी आए।

आपात्तकाल के समय बंसीलाल पूरे देश में एक चर्चित चेहरे के सामने आए। एमरजैंसी लागू करने को लेकर इंदिरा गांधी ने संजय गांधी, आरके धवन, बंसीलाल, ओम मेहता, सिद्धार्थ शंकर राय और दिल्ली के तत्कालीन गवर्नर किशन चंद से विचार सांझे किए थे। 1975 में एमरजैंसी लगी।

दरअसल इंदिरा गांधी के बेटे ही परिवार नियोजन की नीति लेकर आए थे। बंसीलाल के अच्छे दोस्त थे। ऐसे में नसबंदी के प्रोजेक्ट को बंसीलाल ने सिरे चढ़ाने के लिए बहुत अधिक सख्ती की।

पुलिस रात के समय गांव में घुस जाती थी। जबरन नसबंदी की जाती थी। उस समय बंसीलाल पर कई तरह के नारे और गाने भी बने। एमरजैंसी के दौर में ही जेपी पूरे देश में रैलियां कर रहे थे और हरियाणा में चौधरी देवीलाल पूरी तरह से सक्रिय हो गए थे।

यही वजह रही कि एमरजैंसी के कुछ समय बाद देश में हुए आम चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई। हरियाणा में जनता पार्टी केा 75 सीटों पर जीत मिली और एमरजैंसी के चलते ही बंसीलाल को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

शराबबंदी ने हाशिए पर ला दिया सियासी कॅरियर

इसके बाद एक और मौका आया जब बंसीलाल को अपने सख्त निर्णय की वजह से सत्ता से हाथ धोना पड़ा। यह मौका था साल 1996 में। साल 1996 में चौधरी बंसीलाल की हविपा ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की।

अपनी सहयोगी भाजपा के साथ मिलकर हविपा ने सरकार बनाई और बंसीलाल चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। बंसीलाल ने चुनाव में शराबबंदी लागू करने का वादा किया था। बंसीलाल ने मुख्यमंत्री बनने कुछ समय बाद ही 31 जुलाई 1996 को शराबबंदी लागू कर दी।

शराबबंदी के बाद हरियाणा में बंसीलाल को सियासी नफे की बजाय नुक्सान झेलना पड़ा। अवैध शराब के केस और घपले सामने आने लगे।

यहां तक कि उनके बेटे सुरेंद्र ङ्क्षसह पर भी आरोप लगे। आलम यह हो गया कि शराब के आदी लोग बॉर्डर इलाकों में राजस्थान और पंजाब के गांवों में जाने लगे। दो-दो दिन शराब ठेकों के आगे पड़े रहते। शराब के केस इतने बढ़ गए कि थानों और मालखानों में शराब रखने की जगह नहीं बची।

हरियाणा के मुख्य सचिव रह चुके राम सहाय वर्मा अपनी किताब माई एनकाऊंटर्स विद थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं शराबबंदी के पहले नौ महीनों में ही 31,594 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कुल 29174 केस दर्ज किए गए। यहां तक महिलाएं भी शराब तस्करी में संलिप्त होने लगीं।

1998 के संसदीय चुनाव में बंसीलाल 10 में से 9 सीटों पर चुनाव हार गए। उनके बेटे सुरेंद्र ङ्क्षसह ही भिवानी से जीत पाए। अब बंसीलाल को यह महसूस होने लगा था कि शराबबंदी का उनका निर्णय ठीक नहीं था।

ऐसे में 1 अप्रैल 1999 को बंसीलाल ने शराबबंदी का फैसला वापस ले लिया। इसके कुछ माह बाद ही बंसीलाल के 22 विधायकों को ओमप्रकाश चौटाला ने अपने पाले में कर लिया।

इनैलो की सरकार बन गई और चौटाला हरियाणा के चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए। इसके करीब एक वर्ष बाद साल 2000 के विधानसभा चुनाव में बंसीलाल की हविपा 2 सीटों पर सिमट गई।

शराबबंदी का यह ऐसा निर्णय रहा कि बंसीलाल को साल 2004 में अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में करना पड़ा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *